हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी

महत्वपूर्ण जानकारी

  • संत कबीरदास जी का यह दोहा हमें जीवन की नश्वरता और आत्मा की शाश्वतता का बोध कराता है। जब कोई व्यक्ति मरता है, तो उसका शरीर लकड़ी की तरह जलता है, और बाल घास की तरह जल जाते हैं। कबीरदास जी यह सब देखकर व्यथित हो जाते हैं — क्योंकि वह सिर्फ शरीर की मृत्यु नहीं देख रहे, बल्कि एक समाज की गहरी नींद में डूबी हुई आत्मा को भी देख रहे हैं।

हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।

अर्थ: यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं। सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है। 

दोहा का भावार्थ:

  • "हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी" — हाड़ यानी हड्डियाँ, जब चिता पर जलती हैं तो वैसी ही जलती हैं जैसे सूखी लकड़ी।
  • "केस जलै ज्यूं घास" — बाल, जो बड़ी नाजुक होते हैं, वो घास की तरह फुंक जाते हैं।
  • "सब तन जलता देखि करि" — शरीर के एक-एक अंग को जलते हुए देखकर,
  • "भया कबीर उदास" — कबीर उदास हो गए। क्यों? क्योंकि शरीर की यह दशा देखकर उन्हें उस आत्मा की याद आई जो मोह और माया में फंसी रह गई।

कबीर की उदासी का कारण:

कबीरदास जी की उदासी किसी आम इंसान की भावुकता नहीं है, बल्कि एक जगी हुई आत्मा की करुणा है। वे इस सच्चाई को जानते थे कि यह शरीर नश्वर है, लेकिन लोग फिर भी इसको ही सबकुछ मान बैठे हैं।
मृत्यु के बाद यह शरीर कुछ भी नहीं रह जाता — न शोभा, न सुगंध, न पहचान। फिर भी जीवित रहते समय हम इसी शरीर के लिए काम करते रहते हैं, छल-कपट करते हैं, दूसरों को दुख देते हैं।

सीख क्या मिलती है?

इस दोहे के ज़रिए कबीरदास जी हमें एक बहुत बड़ा सबक देना चाहते हैं —
जागो! जब तक यह शरीर है, कुछ ऐसा कर जाओ जिससे आत्मा का कल्याण हो।

  • भौतिक चीज़ें खत्म हो जाएंगी।

  • रूप, सौंदर्य, धन सब राख हो जाएगा।

  • लेकिन आपके कर्म, आपका प्रेम, आपकी भक्ति — यही आपके साथ जाएगा।

आज के जीवन में प्रासंगिकता:

आज जब हम दिखावे, सोशल मीडिया, बाहरी सुंदरता और भौतिक सुख में उलझे हुए हैं, तब यह दोहा हमें आईना दिखाता है।
जो शरीर आज हमें इतना प्यारा लगता है, वही कल चिता पर जल जाएगा।
तो क्यों न अभी से ही आत्मा की ओर रुख करें? क्यों न अपने जीवन को थोड़ी शांति, प्रेम और भक्ति से भर दें?




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