मगंल भवन अमंगल हारी

महत्वपूर्ण जानकारी

  • "मंगल भवन अमंगल हारी" - यह श्री तुलसीदास जी की महाकाव्य 'रामचरितमानस' से प्रसिद्ध दोहा है जो हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्सों में से एक है। इस दोहे में समाहित है साक्षात् परमात्मा का आशीर्वाद और भक्ति की शक्ति का प्रतीक, जो सदैव मनुष्य की जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की दिशा में मार्गदर्शन करता है।

हो.. मगंल भवन अमंगल हारी
द्रबहु सु दशरथ अचर बिहारी
राम सिया राम सिया राम जय जय राम
राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो.. होई हैं वोही जो राम रची राखा
को करी तरक बढ़ावे साखा
राम सिया राम सिया राम जय जय राम
राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो.. धिरज धरम मित्र अरु नारी
आपद काल परखिये चारि
राम सिया राम सिया राम जय जय राम, राम
राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो.. जेहिके जेहि पर सत्य सनेहू
सो तेहि मिलय ना कछु संदेहू
राम सिया राम सिया राम जय जय राम, राम
राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो.. जाकी रही भावना जैसी
प्रभू मूर्ति देखी तीन तैसी
राम सिया राम सिया राम जय जय राम, राम
राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो.. रघुकुल रीत सदा चली आयी
प्राण जाए पर वचन न जायी
राम सिया राम सिया राम जय जय राम, राम
राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो.. हरी अनंत हरी कथा अनंता
कहही सुनही बहुविधि सब संता
राम सिया राम सिया राम जय जय राम, राम
राम सिया राम सिया राम जय जय राम
राम सिया राम सिया राम जय जय राम





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