दोस पराए देखि करि

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त ।
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत ।।

भावार्थ : इंसान की फितरत कुछ ऐसी है कि दूसरों के अंदर की बुराइयों को देखकर उनके दोषों पर हँसता है, व्यंग करता है लेकिन अपने दोषों पर कभी नजर नहीं जाती जिसका ना कोई आदि है न अंत।

 







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