हिंदू धर्म में, दीपावली का त्योहार केवल दीप जलाने का उत्सव नहीं, बल्कि महाशक्ति महालक्ष्मी के स्वागत का एक महापर्व है। शुभ मुहूर्त में किया गया यह पूजन जीवन में स्थिर लक्ष्मी और समृद्धि लाता है।
यहाँ दी गई है दीपावली की संपूर्ण पूजन विधि और आवश्यक मंत्र:
पूजन से पूर्व शरीर और मन का शुद्ध होना अत्यंत आवश्यक है।
सबसे पहले, कुश या पुष्प से अपने ऊपर, आसन पर और पूजा सामग्री पर जल के छींटे लगाएँ।
“ऊं अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥”
तीन बार आचमन करें (जल ग्रहण करें), फिर हाथ धोएँ।
इसके बाद, आसन को शुद्ध करने के लिए यह मंत्र बोलें:
“ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥”
अनामिका उंगली (Ring Finger) से चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें:
“चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठ सर्वदा।”
बिना संकल्प के पूजन का फल प्राप्त नहीं होता। हाथ में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई और मेवा आदि सामग्री लेकर संकल्प करें।
संकल्प मंत्र: “ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2082 तमेऽब्दे सिद्धार्थी नाम संवत्सरे दक्षिणायने हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ सोमवासरे हस्त नक्षत्रे वैधृति योगे शकुनि करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।”
(ध्यान दें: संकल्प मंत्र बोलते समय अपने नगर/गाँव का नाम और अपने गोत्र का नाम अवश्य लें।)
कलश पर मौली बाँधकर आम के पत्ते रखें। कलश में सुपारी, दूर्वा, अक्षत और सिक्का डालें। नारियल पर वस्त्र लपेटकर कलश पर स्थापित करें। हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देवता का आह्वान करें:
आह्वान मंत्र: “ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:।” “(अस्मिन कलशे वरुणं सांग सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)”
नियमानुसार, सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें।
गणेश पूजा के बाद, महालक्ष्मी पूजन का अनुष्ठान शुरू होता है:
सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करें:
“ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी। गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।। लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। ज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः। नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।”
प्रतिष्ठा, स्नान, वस्त्र और आभूषण
बाएँ हाथ में अक्षत लेकर दाएँ हाथ से धीरे-धीरे अक्षत अर्पित करते हुए मंत्र बोलें:
अंग पूजा की तरह ही अक्षत लेकर मंत्रों का उच्चारण करें:
पूजन के अंत में, सभी अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा प्रार्थना करें और आरती करके पूजन का समापन करें।