गुड़ी पड़वा महोत्सव 2025

महत्वपूर्ण जानकारी

  • गुड़ी पड़वा 2025
  • रविवार, 30 मार्च 2025
  • क्या आप जानते हैं: गुड़ी पड़वा को हिंदू नव वर्ष की शुरुआत माना जाता है।

गुड़ी पड़वा मराठी और कोंकणी हिन्दुओं के लिए पांरपरिक त्योहार है। गुड़ी पड़वा का त्योहार को किसी ने किसी रूप में पूरे भारत में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा वंसत समय का त्योहार है। गुड़ पड़वा हिन्दू नव वर्ष आरम्भ माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा, उगादि या युगादि कहा जाता है। ’गुड़ी’ का अर्थ ’विजय पताका’ होता है। ‘युग‘ और ‘आदि‘ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि‘। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व ’ग़ुड़ी पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ होता है।

गुड़ी पड़वा का महत्व

गुड़ी पड़वा वसंत के आगमन और रबी फसलों की कटाई का प्रतीक है। यह त्योहार उस पौराणिक दिन से जुड़ा हुआ है इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं।

आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सारे घरों को आम के पेड़ की पत्तियों के बंदनवार से सजाया जाता है। सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ यह बंदनवार समृद्धि, व अच्छी फसल के भी परिचायक हैं। ‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की।

गुड़ी पड़वा से जुड़ी मान्यताएँ

शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिए और इस सेना की मदद से शिक्तशाली शत्रुओं को पराजित किया। इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ।
ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने वानरराज बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज फहराए। आज भी घर के आंगन में ग़ुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को गुड़ीपडवा नाम दिया गया।

गुड़ी पड़वा का त्योहार अन्य राज्यों

महाराष्ट्र में गुड़ी पांडव के रूप में जाना जाता है। गोवा के हिंदू कोंकणी, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना राज्य में उगादी और कश्मीरी पंडितों के बीच नवरेह के नाम से जाना जाता है। बंगाल में इस अवसर को नबा बरसा के रूप में, असम में बिहू के रूप में, केरल में विशु के रूप में, तमिलनाडु में पुतुहांडु के रूप में मनाया जाता है। इसे साल का सबसे शुभ दिन माना जाता है। यह त्योहार भारत में ही नहीं नेपाल, बर्मा, कंबोडिया व अन्य देशों में भी मनाया जाता है।



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