गायत्री जयंती के दिन वेदमाता माँ गायत्री की पूजा की जाती है। इस दिन शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति पाने के लिए उपवास रखा जाता है। व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है, और घर में व्याप्त दुख और दरिद्रता दूर हो जाती है। इस अवसर पर मंदिरों में माँ गायत्री के निमित्त विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है और गायत्री पाठ किया जाता है। साधक पूजा के समय गायत्री मंत्र का जप भी करते हैं, जिससे पूरे परिवार का कल्याण होता है। गायत्री जयंती का संबंध गायत्री मंत्र से है, जिसे सभी मंत्रों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और इस मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
गायत्री मंत्र "ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्" एक ऐसा मंत्र है जिसे सभी वेदों के सार के रूप में माना जाता है। इसे नियमित जपने से आत्मिक उन्नति और मानसिक शांति प्राप्त होती है। गायत्री मंत्र का उच्चारण साधक की बुद्धि को तेज और मन को स्थिर बनाता है।
गायत्री जयंती के दिन माँ गायत्री का अवतरण हुआ था। वेदों में उन्हें वेद माता, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पालन करने वाली देवी के रूप में मान्यता दी गई है। माँ गायत्री को ज्ञान, बुद्धि, और प्रकाश की देवी माना जाता है, जो साधकों को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
गायत्री जयंती के दिन साधक और भक्तगण व्रत और उपवास रखते हैं। इस दिन गायत्री मंत्र का जप, हवन और पूजा की जाती है। विभिन्न मंदिरों और घरों में माँ गायत्री की प्रतिमा की पूजा की जाती है और भक्तजन भक्ति भाव से उन्हें पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करते हैं। इस दिन कई स्थानों पर विशेष धार्मिक आयोजनों का भी आयोजन होता है जिसमें सत्संग, कीर्तन और प्रवचन शामिल होते हैं।
गायत्री जयंती का आध्यात्मिक महत्व भी बहुत बड़ा है। इसे आत्मा की शुद्धि और मन की शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। गायत्री मंत्र का नियमित जप साधक को अध्यात्म की ऊंचाइयों तक ले जाता है और उसे जीवन की सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
गायत्री जयंती के दिन भक्तगण प्रातःकाल में स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं और माँ गायत्री की पूजा आरंभ करते हैं। गायत्री मंत्र का जाप कम से कम 108 बार किया जाता है। इस दिन विशेष हवन का आयोजन भी किया जाता है जिसमें गायत्री मंत्र के साथ आहुतियाँ दी जाती हैं।