

हर साल वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान परशुराम के सम्मान में एक विशेष व्रत रखा जाता है — जिसे जामदग्न्य परशुराम व्रत या परशुराम द्वादशी कहा जाता है। यह दिन सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक ऐसा अवसर है जो हमें धर्म, शक्ति और आत्मज्ञान की याद दिलाता है।
भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। उनका जन्म महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका से हुआ। वे न केवल चिरंजीवी माने जाते हैं, बल्कि एक ऐसे ऋषि भी हैं जिन्होंने अन्याय और अधर्म के खिलाफ अपने शस्त्र उठाए — और कभी भी सत्य और धर्म से समझौता नहीं किया।
उनकी जीवनगाथा में हमें वो संघर्ष, त्याग और तपस्या दिखाई देती है जो एक सामान्य मनुष्य को महापुरुष बनाती है।
यह व्रत मोहिनी एकादशी के अगले दिन आता है, लेकिन कुछ वर्षों में ये एक ही दिन भी हो सकते हैं। इस दिन भक्त:
माना जाता है कि इस व्रत से पापों का क्षय, धन और बुद्धि की प्राप्ति, और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
आज के दौर में जहाँ हम अपने मूल्यों और सिद्धांतों से समझौते करते रहते हैं, परशुराम द्वादशी हमें याद दिलाती है कि सच्चाई, साहस और संयम से ही जीवन में स्थायी सफलता और शांति मिलती है। भगवान परशुराम एक विचार हैं — एक ऐसा विचार जो हर युग में प्रासंगिक है।
"परशुराम केवल एक योद्धा नहीं थे, वो धर्म की आवाज़ थे — जो आज भी हमारे अंदर गूंज सकती है, अगर हम चाहें।"