🪔 परशुराम द्वादशी 2026 - धर्म, शक्ति और ज्ञान का पावन पर्व

महत्वपूर्ण जानकारी

  • परशुराम द्वादशी 2026
  • मंगलवार, 28 अप्रैल 2026

हर साल वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान परशुराम के सम्मान में एक विशेष व्रत रखा जाता है — जिसे जामदग्न्य परशुराम व्रत या परशुराम द्वादशी कहा जाता है। यह दिन सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक ऐसा अवसर है जो हमें धर्म, शक्ति और आत्मज्ञान की याद दिलाता है।

भगवान परशुराम: एक योद्धा तपस्वी

भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। उनका जन्म महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका से हुआ। वे न केवल चिरंजीवी माने जाते हैं, बल्कि एक ऐसे ऋषि भी हैं जिन्होंने अन्याय और अधर्म के खिलाफ अपने शस्त्र उठाए — और कभी भी सत्य और धर्म से समझौता नहीं किया।

उनकी जीवनगाथा में हमें वो संघर्ष, त्याग और तपस्या दिखाई देती है जो एक सामान्य मनुष्य को महापुरुष बनाती है।

📖 शास्त्रों में परशुराम का उल्लेख

  • उन्हें भगवान शिव ने दिव्य परशु (कुल्हाड़ी) और युद्ध की शिक्षा दी।
  • वे कलारीपयट्टू, भारत की प्राचीन युद्धकला के गुरु माने जाते हैं।
  • उन्होंने भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महान योद्धाओं को शिक्षा दी।
  • उनके पास भार्गवास्त्र जैसे दिव्य अस्त्र भी थे।

🌿 परशुराम द्वादशी व्रत का महत्व

यह व्रत मोहिनी एकादशी के अगले दिन आता है, लेकिन कुछ वर्षों में ये एक ही दिन भी हो सकते हैं। इस दिन भक्त:

  • सच्चे मन से उपवास करते हैं।
  • भगवान परशुराम की पूजा करते हैं।
  • शक्ति, साहस, शांति और आत्मिक उन्नति की कामना करते हैं।

माना जाता है कि इस व्रत से पापों का क्षय, धन और बुद्धि की प्राप्ति, और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

🙏 क्या सीख सकते हैं हम परशुराम जी से?

  • अन्याय के खिलाफ खड़ा होना ही सच्चा धर्म है।
  • तपस्या और ज्ञान से ही सच्ची शक्ति प्राप्त होती है।
  • जीवन में शस्त्र हो या शास्त्र, दोनों का संतुलन ज़रूरी है।
  • आत्मसम्मान और सिद्धांतों पर कभी समझौता मत करो।

💬 अंतिम भाव

आज के दौर में जहाँ हम अपने मूल्यों और सिद्धांतों से समझौते करते रहते हैं, परशुराम द्वादशी हमें याद दिलाती है कि सच्चाई, साहस और संयम से ही जीवन में स्थायी सफलता और शांति मिलती है। भगवान परशुराम एक विचार हैं — एक ऐसा विचार जो हर युग में प्रासंगिक है।

"परशुराम केवल एक योद्धा नहीं थे, वो धर्म की आवाज़ थे — जो आज भी हमारे अंदर गूंज सकती है, अगर हम चाहें।"



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