गुरुद्वारा श्री पत्थर साहिब

महत्वपूर्ण जानकारी

  • Location: NH 1D, Leh, Jammu and Kashmir 194101.
  • Opening and Closing Timings: Open all days 06:00 am to 07:00 pm
  • Nearest Railway Station : Jammu Railway Station, which is around 659.3 km away from the Gurdwara Pathar Sahib.
  • Nearest Air Port : Leh Airport, which is around 21.1 km away from the Gurdwara Pathar Sahib.
  • Best Time to Visit : June–October.

गुरुद्वारा श्री पत्थर साहिब, लेह से पहले 25 किमी दूर श्रीनगर-लेह रोड पर स्थित है। यह गुरुद्वारा बहुत सुंदर है और यह सिख धर्म के संस्थापक पहले गुरु, गुरु नानक देव जी की स्मृति में बनाया गया था।

इतिहासः गुरु नानक देव जी 1517 ई.पू. में अपनी दूसरी यात्रा (1515-1518 ए.डी.) के दौरान यहां पहुंचे थे और सुमेर पहाड़ियों पर अपना धर्म उपदेश देने के बाद, गुरु नानक देवजी नेपाल, सिक्किम और तिब्बत की यात्रा के बाद यरकंद के माध्यम से यहां पहुंचे थे। गुरु नानक देव जहां रूके हुए थे उनकी विपरीत पहाड़ी में, एक क्रूर दानव रहता था जो लोगों को डराता और हत्या करने के बाद उन्हें खा जाया करता था। लोगो ने अपने दुर्दशा से बहुत दुःखी थे, गुरु जी को इस जगह देखकर राहत की सांस ली, परन्तु राक्षस यह देखकर बहुत नाराज था और उसने एक योजना तैयार की, एक दिन, जब गुरु जी भगवान की पूजा में गहरी ध्यान कर रहे थे, राक्षस ने इस अवसर का लाभ उठाया और गुरु जी पर एक बड़ा पत्थर फेंक दिया ताकि गुरू जी विशाल पत्थर के नीचे दबकर मर जाये। लेकिन ‘जब सर्वशक्तिमान रक्षा करता है, तो कोई भी उसे मार नहीं सकता’ और उस समय एक असामान्य घटना हुई। जैस ही बड़ा पत्थर गुरु जी को छुआ, पत्थर मोम जैसा बन गया और गुरु जी का शरीर पत्थर गढ़ गया, लेकिन गुरुजी के ध्यान पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। दानव ने आश्वस्त करने के लिए, कि गुरु जी को मार गये और पत्थर के पास गया था। गुरु जी जिन्दा देखकर, दानव आश्चर्यचकित हो गया और क्रोधित हो गया, उसने अपने दाहिने पैर से पत्थर को लात मारी लेकिन राक्षस का पैर भी मोम में गढ़ गया। दानव ने महसूस किया कि वह अपनी मूर्खता से एक भगवान के भक्त को मारने की कोशिश कर रहा था और वह इस गलती के लिए माफी माँगने के लिए गुरु जी के पैर में गिर गया। गुरु जी ने अपनी आंखें खोली और मानवता की सेवा के द्वारा शेष जीवन को जीने के लिए राक्षस को अपनी शरण में लिया और जिसका उसे लाभ हुआ। उसके बाद राक्षस गुरु जी के कहे अनुसार शांतिपूर्वक जीवन जीने लगा। कुछ समय बाद, गुरुजी कार्गल के माध्यम से कारगिल चले गए, आज भी गुरुद्वारा श्री पत्थर साहिब के अंदर पवित्र पत्थर दे जा सकता है जिसमें गुरु जी की छवी छपी हुई है।

श्री पत्थर साहब गुरुद्वारा जाने के लिए, नई दिल्ली से जम्मू और श्रीनगर से लेह की सीधी हवाई उड़ान है और लेह में होटल में रह सकते है। सड़क मार्ग से लेह जाने के लिए दो मार्ग हैं, एक श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर से होकर जाता है और दूसरा, मनाली, हिमाचल प्रदेश से होकर जाता है। अत्यधिक बर्फबारी के कारण दोनों सड़कों को नवंबर से मई तक बंद कर दिया जाता है और यह दोनो मार्ग जून से अक्टूबर तक खुला रहता है। लेह उच्च ऊंचाई पर स्थित है तथा ऑक्सीजन की कमी के कारण श्वास लेने की समस्या हो सकती है आगंतुकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने डॉक्टरों से परामर्श लें और इस यात्रा पर चलने से पहले उचित गर्म कपड़े अपने साथ ले, क्योंकि तापमान सर्दियों में -20 डिग्री से अधिक हो जाता है। लेह से गुरुद्वारा पत्थर साहिब तक का मार्ग 25 किलोमीटर लम्बा जो अच्छी स्थिति में है। आगंतुक बस या टैक्सी से जा सकते हैं गुरुद्वारा साहिब चुंबकीय हिल भारत के निकट मुख्य सड़क के बगल में स्थित है।





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