श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में

श्री रामचंद्रजी महाराज के भरे दरबार में,
विभीषण ने ताना मारा –
ऐ बजरंगी, क्या तेरे मन में भी राम है?

हनुमानजी ने श्री राम का नाम लिया
और सीना फाड़ा,
बोले ले देख –
== जय श्री राम ==

नहीं चलाओ बाण व्यंग के, ऐ विभीषण,
ताना ना सह पाऊं।
क्यों तोड़ी है यह माला,
तुझे ऐ लंकापति बतलाऊं॥

मुझ में भी है, तुझ में भी है,
सब में है समझाऊं।
ऐ लंकापति विभीषण, ले देख,
मैं तुझ को आज दिखाऊं॥

और वीर बजरंगी ने सीना चीर दिया और बोले ले देख
== जय श्री राम ==

श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में,
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में,
देख लो मेरे दिल के नगिनें में।

देख लो मेरे दिल के नगिनें में,
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में॥
मेरे राम…

(ऐ विभीषण)
मुझ को कीर्ति न वैभव, न यश चाहिए,
राम के नाम का मुझ को रस चाहिए।
सुख मिले ऐसे अमृत को पीने में,
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में॥
मेरे राम…

राम रसिया हूँ मैं, राम सुमिरन करू,
सिया-राम का सदा ही मै चिंतन करू।
अनमोल कोई भी चीज मेरे काम की नहीं
दिखती अगर उसमे छवि सिया राम की नहीं॥

राम रसिया हूँ मैं, राम सुमिरन करू,
सिया-राम का सदा ही मै चिंतन करू।
सच्चा आंनंद है ऐसे जीने में,
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में॥

फाड़ सीना हैं सब को यह दिखला दिया,
भक्ति में मस्ती हैं बेधड़क दिखला दिया।
कोई मस्ती ना सागर मीने में,
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में॥

श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में,
देख लो मेरे दिल के नगिनें में।
देख लो मेरे दिल के नगिनें में,
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में॥
मेरे राम…




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