काशी विश्वनाथ अष्टकम - मंत्र

महत्वपूर्ण जानकारी

  • श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम दिव्य स्तोत्र है, जो कि भगवान शिव के काशी विश्वनाथ रूप को समर्पित है। भगवान शिव की महिमा और महत्व का अद्वितीय प्रकटन है। इस अष्टकम् में आदि शङ्कराचार्य ने श्रीकाशीविश्वनाथ महादेव के गुणों और महिमा का गान किया है। यह अष्टकम् शिव भक्तों के बीच बड़े प्रिय होता है और उन्हें भगवान शिव के अनंत गुणों की स्मरणा में लाता है। 

  • इस स्तोत्र के नियमित पाठ से गम्भीर से गम्भीर रोगों से मुक्ति मिलती है। इसके प्रभाव से विवाह सम्बन्धी समस्याओं निदान, सन्तान सुख, शत्रुओं पर विजय व धन-धान्य की प्राप्ति होती है।

  • भगवान श्रीकाशीविश्वनाथ महादेव की आराधना करते समय, यह अष्टकम् आपके मन को शांति और आनंद से भर देगा

॥ श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम् ॥

गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं
गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम् ।
नारायणप्रियमनंगमदापहारं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥1॥

वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं
वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम् ।
वामेनविग्रहवरेणकलत्रवन्तं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥2॥

भूताधिपं भुजगभूषणभूषितांगं
व्याघ्राजिनांबरधरं जटिलं त्रिनेत्रम् ।
पाशांकुशाभयवरप्रदशूलपाणिं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥3॥

शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं
भालेक्षणानलविशोषितपंचबाणम् ।
नागाधिपारचितभासुरकर्णपूरं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥4॥

पंचाननं दुरितमत्तमतङ्गजानां
नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नगानाम् ।
दावानलं मरणशोकजराटवीनां
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥5॥

तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयं
आनन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम् ।
नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरूपं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥6॥

रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं
वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम् ।
माधुर्यधैर्यसुभगं गरलाभिरामं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥7॥

आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां
पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ ।
आदाय हृत्कमलमध्यगतं परेशं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥8॥

॥ फलश्रुति ॥
वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य
व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्यः ।
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं
सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम् ॥

विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
॥ इति श्रीमहर्षिव्यासप्रणीतं श्रीविश्वनाथाष्टकं सम्पूर्णम् ॥ 


- आदि शङ्कराचार्य







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