पंच केदार यात्रा 2023

महत्वपूर्ण जानकारी

  • स्थान: गढ़वाल हिमाचल पर्वत, उत्तराखंड, भारत।
  • निकटतम हवाई अड्डा: देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा।
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: ऋषिकेश रेलवे स्टेशन।
  • प्राथमिक देवता: भगवान शिव।
  • क्या आप जानते हैं: पंच केदार का मंदिर पांडवों द्वारा बनाया गया था।
  • केदारनाथ मंदिर: 23 अप्रैल 2023 को कपाट खुलेंगे और भाई दूज के पावन दिन बंद रहेंगे।
  • कल्पेश्वर मंदिर : साल भर खुला रहता है
  • मध्य-महेश्वर मंदिर : 23 अप्रैल 2023
  • रुद्रनाथ मंदिर : 23 अप्रैल 2023
  • तुंगनाथ मंदिर : 23 अप्रैल 2023

पंच केदार यात्रा भगवान शिव को समर्पित शैव संप्रदाय के पांच हिंदू मंदिरों या पवित्र स्थानों को दर्शाता है। ये सभी पांच स्थान भारत के राज्य उत्तराखंड में गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में स्थित हैं। ऐसा माना जाता है कि ये पांचो स्थानों पर जो पांच मंदिर है उन सभी मंदिरों को पांडवों ने बनाया था।

पंच केदार की यात्रा तीर्थ यात्रियों के लिए का कठिन यात्रा होती है। ये सभी तीर्थ स्थान गढ़वाल हिमालय के काफी ऊंचाईयों पर स्थित है। जिनमें से चार स्थान तो सिर्फ अप्रैल से अक्टूबर की महीने में ही खुलते है। ये पंाच केदार धाम के नाम है केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर है। कल्पेश्वर एक मात्र मंदिर है जो पूरे साल तीर्थ यात्रियों के लिए खुला रहता है। इनमें से केदारनाथ मुख्य मंदिर है जो गढ़वाल हिमालय के चार प्रसिद्ध छोटे चार धामों में से एक है तथा इसका नाम 12 ज्योतिलिंगों में भी आता है।

गढ़वाल क्षेत्र को केदार खंड भी कहा जाता है जो भगवान शिव का स्थानीय नाम है। विशेष रूप से इस क्षेत्र का पश्चिमी भाग, जो चमोली जिले का आधा हिस्सा है, जिसे केदार-क्षेत्र या केदार मंडल के रूप में जाना जाता है, इसमें पंच केदार के गठन के सभी पांचों मंदिर शामिल है।

एक कथा के अनुसार इस मंदिर को पंचकेदार इसलिए माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवो अपने पाप से मुक्ति चाहते थे इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवो को सलाह दी थी कि वे भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करे। इसलिए पांडवो भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए वाराणसी पहुंच गए परन्तु भगवान शंकर वाराणसी से चले गए और गुप्तकाशी में आकर छुप गए क्योकि भगवान शंकर पांडवो से नाराज थे पांडवो अपने कुल का नाश किया था। जब पांडवो गुप्तकाशी पंहुचे तो फिर भगवान शंकर केदारनाथ पहुँच गए जहां भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर रखा था। पांडवो ने भगवान शंकर को खोज कर उनसे आर्शीवाद प्राप्त किया था। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमाहेश्वर में, भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए थे।







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