
जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा भारत के पवित्र व बडे त्योहारों में से एक है। यह पर्व हिन्दूओं का एक पवित्र त्योहार है। इस रथ यात्रा का आयोजन हर साल पुरी में किया जाता है। रथ यात्रा दिवस हिन्दूं कैलेडर के आधार पर तय किया जाता है। यह आषाढ़ महीनें के शुक्ल पक्ष के दौरान द्वितीय तीथी पर तय किया जाता है। वर्तमान में ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार जून व जुलाई महीने में पड़ता है।
यह उत्सव भगवान् जगन्नाथ के राम्मान में मनाया जाता है । जगन्नाथ को विष्णु के दस अवतारों में से एक अवतार माना जाता है।
पुरी का मंदिर जो भगवान जगन्नाथ के नाम से जाना जाता है। अपनी वार्षिक रथ यात्रा या रथ उत्सव के लिए प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। ये रथ लकड़ी से बने भव्य और सुसज्जित होते है। यह रथ यात्रा नगर के प्रमुख मार्गो से निकाली जाता है। रथ में 16 पहिये होते है। ये रथ बहुत बड़े होते है इनकी ऊँचाई 137 मीटर है तथा बीच का स्थान 107 मीटर लम्बा और उतना ही चैड़ा वर्गाकार है। इनको देखने के लिए भारत से ही नहीं अपितु विश्व भर से लोग आते है। रथ में घोड़े जुते दिखाये जाते हैं जोकि लकड़ी से बनाये जाते है, तथा श्रद्धा पुर्ण रस्सी के सहारे इन रथों को खीचते है। इस कार्य को श्रद्धालु बड़ा पुण्य का काम मानते है। इन रथों का बनाने का कार्य हर साल किया जाता है। देशभर से हजारों श्रद्धालु भक्त इस उत्सव में भाग लेने के लिए पुरी जाते हैं । इस अवसर पर पुरी में इतनी भीड़ हो जाती है कि इसे संसार के सबसे बड़े उत्सवों में गिना जाता है ।
मध्य-काल से ही यह उत्सव हर्षोल्लस के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही यह उत्सव भारत के सभी वैष्णव कृष्ण मंदिरों में मनाया जाता है, एवं यात्रा निकाली जाती है।
पुरी में रथ-यात्रा समारोह सात दिनों तक चलता है। इसका प्रारंभ मंदिर से भगवान् जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाओं को रथ पर स्थापित करने से होता है और एक सप्ताह बाद मंदिर में उन मूर्तियों की पुनः प्रतिष्ठपित कर देने के बाद समाप्त होता है । इस अवधि में पूजा-अर्चना और हरि संकीर्तन होता रहता है। ब्राह्मणो और को भोजन कराया जाता है और दान दिया जाता है।