हिंदू धर्म में पैर छूना एक परंपरा

हिंदू धर्म एक विशाल धार्मिक विचारधारा है, जिसमें नैतिकता, धार्मिकता, और समाज में समर्पण के महत्वपूर्ण मूल्यों को उच्चतम माना जाता है। इस धार्मिक परंपरा में, कुछ विशेष आदर्शों और मान्यताओं को सम्मिलित किया गया है, जो समाज के अनुसार जीवन जीने का निर्देश देते हैं। एक ऐसा मान्यता है कि किसी के पैर छूना एक विशेष रूप से महत्वपूर्ण क्षण है और इसमें विशेष विचार और आदर्शों का पालन किया जाना चाहिए।

माता-पिता के पैरः

हिंदू संस्कृति में, माता-पिता के पैरों का सम्मान करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। माता-पिता को देवता के समान माना जाता है और उनके पैरों को छूकर आशीर्वाद लेना धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है। सनातन धर्म में माता-पिता को उत्तम स्थान और सम्मान दिया जाता है, जिन्हें ‘मातृदेवो भव’ और ‘पितृदेवो भव’ कहा जाता है, उनके पैरों को छूना एक संतान के लिए श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है और इससे उन्हें आशीर्वाद प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म में माता-पिता को प्रथम गुरु भी माना जाता है। सनातन धर्म में माँ और पिताजी देवता के समान माना जाता है और इसे हिन्दू समाज में आर्शीवाद लेने की भावनाओं के साथ स्वीकार किया जाता है।

गुरु के पैरः

गुरु के पैरों को छूकर आशीर्वाद प्राप्त करने का भी महत्व है। गुरु वह व्यक्ति होते हैं जो ज्ञान का प्रकाश देते हैं, जीवन में मार्गदर्शन करते हैं, और शिष्य को धार्मिक और नैतिक मूल्यों की पहचान कराते हैं। गुरु के पैरों को छूकर शिष्य अपने ध्येय की दिशा में स्थानीय नेतृत्व और ज्ञान का सम्मान करता है। जिसके कारण शिष्य अपने जीवन में सही और गलत का निर्णय ले पाता है और गुरु से प्राप्त शिक्षा से अपने जीवन में उच्चतम स्थान की प्राप्ति करता है।

साधु-संत के पैरः

साधु-संतों का सम्मान और आदर करना हिंदू संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। साधु-संतों को हिन्दू धर्म में विशेष स्थान दिया जाता है। साधु-संत वह होते जो कि सामाजिक जीवन को त्याग कर भगवान की आराधना में लग रहते है, इसलिए उनका आदर करना समाज में धार्मिकता और सहशीलता का प्रतीक माना जाता है। उनके पैरों को छूकर साधक अपने ध्येय में स्थानीय नेतृत्व और आध्यात्मिक सजीवता का समर्थन करता है।

इस तरह से हिंदू धर्म में अपने से बडों के पैरों को छूने की परंपरा एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो समर्पण, सम्मान, और समाजिक एकता को प्रोत्साहित करता है। यह न केवल किसी व्यक्ति से आशीर्वाद का लेने का एक प्रतीक है, बल्कि समाज की समृद्धि और समरसता के लिए भी एक महत्वपूर्ण कारक है।







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