पुनरपि जननं पुनरपि मरणम - भज गोविंदम श्लोक

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम् |
इह संसारे बहु दुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारे ‖

अर्थ: पुनः जन्म, पुनः मृत्यु, पुनः माँ के गर्भ में रहना! संसार कीे इस प्रक्रिया (बार-बार जन्म और मृत्यु का चक्र) को पार करना वास्तव में कठिन है। हे मुरारी! कृपया अपनी अहैतुकी दया से मेरी रक्षा करें।

संस्कृत से हिंदी

पुनरापि - बार-बार;
जननं​ – जन्म;
पुनरापि - बार-बार;
मरणम् – मृत्यु;
पुनरापि - बार-बार;
जननी – माँ;
जठरे – पेट में, माँ के गर्भ में;
शयनम् - सोना, आराम करना;
इह - इस संसार में;
संसारे - स्थानांतरण, जन्म और मृत्यु का बार-बार चक्र;
बहु-दुस्तारे - बड़ी कठिनाई से पार करना;
कृपायापारे - अनुग्रह, असीम करुणा से;
पाहि – रक्षा करें;
मुरारे - मुरारि, कृष्ण ।







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