आरती श्री वृषभानुसुता की, मंजु मूर्ति मोहन ममता की।।
त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि, विमल विवेक विराग विकासिनि।
पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि, सुन्दरतम छवि सुन्दरता की।।
आरती श्री वृषभानुसुता की।
मुनि मन मोहन मोहन मोहनि, मधुर मनोहर मूरती सोहनि।
अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि, प्रिय अति सदा सखी ललिता की।।
आरती श्री वृषभानुसुता की।
संतत सेव्य सत मुनि जनकी, आकर अमित दिव्यगुन गनकी।
आकर्षिणी कृष्ण तन मनकी, अति अमूल्य सम्पति समता की।।
आरती श्री वृषभानुसुता की।
कृष्णात्मिका, कृषण सहचारिणि, चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि।
जगज्जननि जग दुखनिवारिणि, आदि अनादिशक्ति विभुता की।।
आरती श्री वृषभानुसुता की।
"श्री राधा जी की आरती" हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण की प्यारी श्री राधा को समर्पित एक भक्ति अनुष्ठान है। इस आरती के दौरान भक्त गीत, प्रार्थना और दीपदान के माध्यम से राधा जी के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करते हैं। आरती में आम तौर पर भजन और प्रार्थना गाते समय राधा जी की मूर्ति या छवि के सामने एक जलता हुआ दीपक या कपूर की लौ लहराना शामिल होता है। यह पूजा का एक प्रतीकात्मक कार्य है और भक्तों के लिए राधा जी के आध्यात्मिक सार से जुड़ने और प्रेम, भक्ति और भगवान कृष्ण के साथ गहरे संबंध के लिए उनका आशीर्वाद मांगने का एक तरीका है। यह आरती कृष्ण भक्ति (भगवान कृष्ण की भक्ति) का एक अभिन्न अंग है और राधा और कृष्ण के भक्तों द्वारा मंदिरों और घरों में बड़ी श्रद्धा के साथ की जाती है।
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