कांवड़ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?

हर वर्ष सावन के महीने में जब आसमान से वर्षा होती हैं और चारों तरफ हरियाली की खुशबू घुलती है, तब सड़कों पर एक और लहर चलती है - भोले बाबा के भक्तों की लहर, जिसे हम कांवड़ यात्रा के नाम से जानते हैं। भगवा वस्त्र, काँधे पर कांवड़, होठों पर ‘बोल बम’ की गूंज और दिल में सिर्फ एक ही भाव - भगवान शिव के चरणों तक पहुँचना।

पर क्या आपने कभी रुककर सोचा है कि इस यात्रा की शुरुआत कैसे हुई? ये परंपरा सिर्फ आस्था नहीं, हजारों वर्षों पुरानी एक गूढ़ कथा की जीती-जागती याद है।

जब देवताओं को भी चाहिए था सहारा

यह बात उस समय की है जब देवता और असुर एक साथ मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे। अमृत की चाह थी, लेकिन सबसे पहले निकला हलाहल विष, जो इतना घातक था कि पूरा सृष्टि संकट में आ गई।

और तब... कोई न आगे आया, न पीछे, बस एक नाम पुकारा गया — महादेव
शिवजी ने बिना एक पल सोचे वह विष पी लिया, ताकि दुनिया बची रहे।

उनके कंठ में वह विष अटक गया और वे नीलकंठ कहलाए। पर विष की तपन से उनका शरीर जलने लगा। देवताओं ने तब उन्हें गंगाजल अर्पित किया — शीतल, पवित्र, शांत जल, जो उनकी पीड़ा को कम कर सके।

जब मनुष्य ने भी उठाया कांवड़

ऐसी मान्यता है कि उस युग में सबसे पहले भगवान परशुराम ने गंगाजल को कांवड़ में भरकर शिवजी का अभिषेक किया था। उन्होंने यह कार्य एक श्रद्धा से नहीं, बल्कि कर्तव्य समझकर किया — जैसे हम अपने पिता की सेवा करते हैं।

धीरे-धीरे यह भावना जनमानस में फैल गई —
"जब देवता शिव को गंगाजल चढ़ाते हैं,
तो हम क्यों न हर सावन उनके लिए एक यात्रा करें?"

और तभी से कांवड़ यात्रा शुरू हुई — एक ऐसी परंपरा जो केवल शरीर से नहीं, दिल से निभाई जाती है।

ये यात्रा सिर्फ पैरों से नहीं, भावनाओं से चलती है

हर साल लाखों शिवभक्त - कई बिना चप्पल, कई बिना कुछ खाये-पिये, कई बीमारियों से जूझते हुए - सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते हैं।
हर कदम पर बस एक ही नाम — “भोले बाबा”
हर सांस में एक ही मंत्र — “हर हर महादेव”

ये यात्रा थकावट से नहीं रुकती,
कांवड़िए बारिश, धूप, धूल, कीचड़ सब पार करते हैं।
क्योंकि ये यात्रा विश्वास से चलती है, रास्ते से नहीं।

आज की कांवड़ — परंपरा और उत्सव का मेल

आज कांवड़ यात्रा न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक बन गई है। गाँव-शहरों के लोग सेवा शिविर लगाते हैं, खाना, पानी, दवाएं मुफ्त में देते हैं।
अजनबी लोग भी साथ में चलते हैं, लेकिन भक्ति उन्हें परिवार बना देती है।

एक अंतिम बात

कांवड़ यात्रा की शुरुआत कोई तारीख़ नहीं थी —
वो शुरुआत एक भाव से हुई थी — त्याग, सेवा और प्रेम

जब भी आप किसी कांवड़िए को देखें, तो उसमें केवल एक यात्री नहीं,
एक समर्पित आत्मा को देखें जो भोलेनाथ तक अपनी भक्ति का संदेश लिए जा रहा है।

बोल बम!
हर हर महादेव!




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