

भगवान शिव — वो महादेव, जिनका स्मरण मात्र मन को शांत कर देता है। जिनकी महिमा अनंत है, और जिनकी पूजा में हर क्रिया का अपना गहरा अर्थ और महत्व है। उन्हीं में से एक है शिवलिंग की परिक्रमा।
परिक्रमा केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि यह अपने ईष्ट देव के चारों ओर प्रेम, आस्था और समर्पण से घूमने का भाव है। जब हम शिवलिंग के चारों ओर चलते हैं, तो यह मानो अपने जीवन के हर चक्कर में शिव का आशीर्वाद लेने जैसा है।
शिवलिंग की संरचना में जो जल निकासी का भाग होता है, उसे योनि भाग कहते हैं। यह भगवान शिव के ऊर्जा-प्रवाह और शक्ति-स्थल का प्रतीक है। शास्त्र कहते हैं कि इस भाग को पार करना अशोभनीय है, क्योंकि यह अत्यंत पवित्र स्थान है और इसे पार करना भगवान के सम्मान के विपरीत माना जाता है।
जब आप परिक्रमा करते हैं, तो हर कदम के साथ एक अदृश्य ऊर्जा आपको घेरे रहती है। शिवलिंग के चारों ओर घूमते हुए ऐसा लगता है जैसे हर चक्कर में मन के बोझ हल्के हो रहे हों, और भगवान शिव अपने अदृश्य हाथों से आपके जीवन के दुख मिटा रहे हों।
एक क्षण के लिए ठहरकर आप महसूस करते हैं— यह केवल पत्थर का लिंग नहीं, बल्कि साक्षात् शिव हैं, जो आपको देख रहे हैं, सुन रहे हैं और आपके भाव को स्वीकार कर रहे हैं।
अंत में
शिवलिंग की परिक्रमा केवल नियम नहीं, बल्कि भक्ति का एक सुंदर भाव है। यह हमें याद दिलाती है कि जीवन में सम्मान, संयम और समर्पण ही सच्ची पूजा है। जब यह भाव मन में आ जाता है, तो भगवान शिव का आशीर्वाद स्वतः ही हमारे जीवन में उतर आता है।