गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट उत्सव भी कहा जाता है, दीवाली के अगले दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के प्रति आभार और प्रकृति के सम्मान का प्रतीक है।
गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण की उस अद्भुत लीला की याद दिलाती है, जब उन्होंने देवराज इंद्र का घमंड तोड़ा था।
कथा: एक बार श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों से इंद्रदेव की पूजा न करके, गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा, क्योंकि वह पर्वत ही उन्हें फल, फूल और आश्रय देता था।
इससे क्रोधित होकर इंद्र ने गोकुल पर मूसलाधार बारिश की। तब भगवान कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली (सबसे छोटी उंगली) पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और ब्रजवासियों और पशुओं को आश्रय देकर उनकी रक्षा की।
सातवें दिन इंद्र को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने क्षमा मांगी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। यह पूजा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और अहंकार पर भक्ति की विजय का प्रतीक है।
पूजा के लिए इन मुख्य चीज़ों को पहले ही इकट्ठा कर लें:
पूजा को श्रद्धा और भक्ति के साथ इन चरणों में पूरा करें:
हाथ जोड़कर गोवर्धन महाराज से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें और इस मंत्र का जाप करें:
यह गोवर्धन महाराज से सुख, शांति और समृद्धि की प्रार्थना करने का सबसे महत्वपूर्ण मंत्र है। इसका जाप आप पूजा के दौरान और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय कर सकते हैं।
"गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक। विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव॥"
सरल अर्थ: हे गोवर्धन पर्वत! आप पृथ्वी को धारण करने वाले हैं और आपने गोकुल की रक्षा की है। आप भगवान विष्णु के हाथों से ऊँचे उठाए गए हैं और लाखों गायों को वरदान देने वाले हैं। हमें भी वरदान दें।
पूजन संपन्न होने के बाद, घर पर बनाए गए गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा करें। परिक्रमा नंगे पैर करनी चाहिए।
गोवर्धन पूजा के दिन गौ माता की पूजा का विशेष विधान है। गौ माता को तिलक, माला पहनाते और उन्हें चारा खिलाते समय यह मंत्र बोल सकते हैं।
"लक्ष्मीर्या लोकपालानाम धेनुरूपेण संस्थिता। घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु॥"
सरल अर्थ: जो लोकपालों की लक्ष्मी हैं और गाय के रूप में विराजमान हैं, जो यज्ञ के लिए घी प्रदान करती हैं, वह गौ माता मेरे सभी पापों को दूर करें।
भगवान श्रीकृष्ण को अन्नकूट (छप्पन भोग) अर्पित करते समय आप इस सरल मंत्र का जाप कर सकते हैं।
"ॐ क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय स्वाहा।"
या फिर, उनका सबसे सरल मंत्र: "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।"
जब आप भगवान कृष्ण को अन्नकूट का भोग लगाते हैं, तो यह मंत्र बोला जाता है (पंचतत्व को अर्पित करने के लिए):
"ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा। ॐ समानाय स्वाहा।" इसके बाद कहें: "श्री कृष्णार्पणमस्तु" (यह सब कृष्ण को समर्पित है)।
अंत में भगवान कृष्ण और गोवर्धन महाराज की आरती गाएं।
पूजा में हुई भूल के लिए क्षमा माँगे।
अन्नकूट का प्रसाद परिवार, ब्राह्मण और ज़रूरतमंदों में बांटें।