श्रीराम वनवास यात्रा मार्ग: अयोध्या से लंका तक

जब भी हम रामायण की कथा पढ़ते या सुनते हैं, एक विशेष भाग हमारे मन को अत्यधिक छू जाता है — श्रीराम का वनवास। यह केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं था, बल्कि एक दिव्य यात्रा थी जो त्याग, प्रेम, मर्यादा और धर्म की मिसाल बन गई। श्रीराम ने न केवल राजपाट त्यागा, बल्कि 14 वर्षों तक भारत के हर उस कोने को छुआ जहाँ आज भी उनके चरणचिह्न मौजूद हैं।

श्रीराम का वनवास केवल एक राजकुमार का राजपाट त्यागने की कहानी नहीं थी, बल्कि धर्म, मर्यादा, प्रेम और तपस्या की एक महान गाथा थी। यह यात्रा उत्तर भारत से प्रारंभ होकर दक्षिण के सुदूर तटों तक फैली — एक ऐसी पदयात्रा जिसने भारत को एक सांस्कृतिक सूत्र में पिरोया। आइए इस दिव्य मार्ग को चरणबद्ध तरीके से समझें:

  • अयोध्या : वनवास की शुरुआत। जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण राजमहल को त्याग कर जंगल की ओर निकल पड़े।
  • प्रयाग (त्रिवेणी संगम) :  यहाँ भरद्वाज ऋषि से भेंट की। उन्होंने चित्रकूट जाने का मार्ग बताया।
  • चित्रकूट (उत्तर प्रदेश) : भरत मिलाप का अत्यंत भावुक दृश्य यहीं घटित हुआ। यहीं वनवास का प्रारंभिक समय बीता।
  • सतना (मध्य प्रदेश) : यहाँ से वन पथ की कठिन यात्रा का आरंभ होता है। घने जंगल और तपस्वी जीवन शुरू होता है।
  • रामटेक (महाराष्ट्र) : यह स्थान भी रामायण काल से जुड़ा हुआ है, माना जाता है कि यहाँ भगवान राम ने कुछ समय विश्राम किया।
  • पंचवटी (नासिक, महाराष्ट्र) : यहीं राक्षसी शूर्पणखा ने सीता माता का अपहरण करवाने की साजिश रची। यही से रावण के अंत की कहानी शुरू होती है।
  • भंडारदरा, तुलजापुर : यहाँ भी श्रीराम का संक्षिप्त प्रवास बताया गया है।
  • सुरेबन, कोप्पल, हम्पी (कर्नाटक) : यह क्षेत्र दक्षिण के गहन वनों से जुड़ा है जहाँ श्रीराम ने अनेक ऋषियों से भेंट की।
  • कार्डीगुड़ (कर्नाटक) : रामायण यात्रा मार्ग में इस स्थान का उल्लेख संघर्षकालीन पड़ाव के रूप में आता है।
  • तिरुचिरापल्ली, रामनाथपुरम, कोडिक्करै (तमिलनाडु) : यहाँ श्रीराम ने समुद्र की आराधना की और समुद्र पर पुल (रामसेतु) बनाने की योजना बनी।
  • रामेश्वरम : यहीं भगवान शिव की स्थापना हुई — श्रीरामेश्वरम ज्योतिर्लिंग। रामसेतु की शुरुआत यहीं से हुई।
  • श्रीलंका (वर्तमान: वासगामुवा, डुनुविला, वंथेरूमूलई) : यहाँ रावण का अंत हुआ और माता सीता की अग्निपरीक्षा के साथ धर्म की विजय हुई।



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