भगवद गीता अध्याय 5, श्लोक 01

अर्जुन उवाच |
संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि |
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् || 1||

अर्थ: अर्जुन ने कहा- हे श्री कृष्ण, आपने कर्म सन्यास (कर्मों के त्याग का मार्ग) की प्रशंसा की, और आपने कर्म योग (भक्ति के साथ काम) करने की भी सलाह दी। कृपया मुझे निर्णायक रूप से बताएं कि दोनों में से कौन अधिक फायदेमंद है?

शब्द से शब्द का अर्थ:

अर्जुन: उवाचा—अर्जुन ने कहा;
सन्यासम्—त्याग;
कर्मणाम - कार्यों का;
कृष्ण - श्री कृष्ण;
पुन: - फिर से;
योगम—कर्म योग के बारे में;
यत्- जो;
शंससि—अधिक लाभकारी;
एतयोः—दोनों में से;
एकम - एक;
तत्—उसको;
मे - मेरे लिए;
ब्रूहि - कृपया बताएं;
सुनिश्चितम्—निर्णायक

 





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