

हमारा जीवन दो आधारों पर चलता है – कर्म और भाग्य। दोनों ही अदृश्य हैं, लेकिन उनका असर हमारे हर कदम और हर अनुभव में झलकता है।
कभी हम मेहनत करते हैं, पसीना बहाते हैं और अपने रास्ते खुद बनाते हैं। यही है कर्म। कर्म हमें सिखाता है कि यदि आप परिश्रम करते हैं, तो जीवन में सफलता और संतोष अवश्य मिलेगा।
वहीं दूसरी ओर, कई बार ऐसा होता है कि बिना मेहनत किए भी हमें बहुत कुछ मिल जाता है। यह है भाग्य। भाग्य वह है जो हमारे लिए पहले से लिखा गया है। चाहे हम चाहें या न चाहें, वह हमें अपना रास्ता दिखा ही देता है।
जीवन का सबसे बड़ा सत्य यही है कि—
यानी दोनों का संतुलन ही जीवन को सार्थक बनाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कर्म और भाग्य के गहरे रहस्य को स्पष्ट किया है। उन्होंने अर्जुन से कहा कि मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने पर है, फल पर नहीं। कर्म करते रहो, निष्काम भाव से, बिना फल की चिंता किए। जब हम सच्चे मन से कर्म करते हैं तो उसका परिणाम अपने समय पर अवश्य मिलता है, और यही ईश्वर की योजना तथा भाग्य कहलाता है। श्रीकृष्ण ने सिखाया कि कर्म ही जीवन का धर्म है, और भाग्य उसी कर्म का प्रतिबिंब। इसलिए कर्मयोगी बनो, फल की चिंता छोड़ो और ईश्वर पर विश्वास रखो। इसलिए हमें हमेशा कर्म करते रहना चाहिए और ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए कि सही समय पर वह हमें वही देगा जो हमारे लिए सबसे अच्छा होगा। यही जीवन का संतुलन है – कर्म और भाग्य का सुंदर संगम।
इसलिए, कर्म करते रहो और साथ ही भाग्य पर भरोसा रखो। मेहनत और विश्वास का यही संगम जीवन में शांति और सफलता लाता है।
यह लेख हमें याद दिलाता है कि केवल भाग्य पर बैठकर इंतज़ार करने से जीवन नहीं बदलता। वहीं केवल कर्म करके भी हर चीज़ नहीं पाई जा सकती। असली जीवन वही है जिसमें हम कर्म और भाग्य दोनों को स्वीकार करें, दोनों का सम्मान करें और आगे बढ़ें।
✨ कर्म करते रहो, परिणाम का विश्वास रखो और भाग्य पर आस्था बनाए रखो – यही जीवन का सच्चा दर्शन है।