शीतला सप्तमी व्रत 2025

महत्वपूर्ण जानकारी

  • शीतला सप्तमी व्रत
  • शुक्रवार, 21 मार्च 2025
  • सप्तमी तिथि प्रारम्भ: 21 मार्च 2025 प्रातः 02:45 बजे
  • सप्तमी तिथि समाप्त: 22 मार्च 2025 प्रातः 04:23 बजे
  • शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त- सुबह 06:24 बजे से शाम 06:33 बजे तक

शीतला सप्तमी हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता हैं। शीतला सप्तमी के दिन महिलायें पूरे दिन का उपवास करती हैं। जैसे कि नाम से स्पष्ट होता है कि यह दिन शीतला माता को समर्पित एक दिन होता है। शीतला सप्तमी लगभग पूरे भारत में मनाया जाता हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में शीतला सप्तमी का विशेष महत्व और उत्साह के साथ माना जाता है इस दिन महिलायें अपने बच्चों चिंकन पाॅक्स और चेचक जैसी संक्रामक बीमारियों से बचाने के लिए देवी शीतला की पूजा करती हैं।

देवी शीतला को भारत में लगलग नामों से जाना जाता है। जैसे कि भारत के दक्षिण राज्यों में ‘देवी पोलेरम्मा’ या ‘देवी मरिअम्मन’ के रूप में पूजा जाता है।
भारत के राज्य कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में, शीतला सप्तमी जैसा एक समान त्योहार मनाया जाता है, जिसे ‘पोलाला अमावस्या’ के नाम से जाना जाता है।

शीतला सप्तमी वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहले, चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को यह त्योहार मनाया जाता है। चैत्र मास में शीतला सप्तमी का विशेष महत्व होता है। दूसरी बार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को भी यह त्योहार मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, ये तिथियां क्रमशः मार्च-अप्रैल और जुलाई-अगस्त के महीनों के आती हैं।  

इस दिन भारत के सभी मंदिरों में यह त्योहार विशेष महत्व और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। दिल्ली के पास गुरूग्राम में देवी शीतला का मंदिर स्थित है। इस दिन शीतला देवी मंदिर में सुबह से भक्तों की लम्बी लाईन लगती है और देवी के दर्शन व पूजा के लिए इंतजार करते है।

शीतला सप्तमी का महत्व

देवी शीतला का माता पार्वती का अवतार माना जाता है। स्कन्द पुराण में शीलता सप्तमी के महत्व का वर्णन किया गया है। हिन्दू धर्म में शक्ति को दो रूपों में पूजा जाता है। जिसमें से देवी शीतला ‘चिंकन पाॅक्स’ या ‘चेचक’ जैसी संक्रामक रोगों से पीडि़त लोगों मुक्त करती है और प्रकृति द्वारा उपचार शक्ति का भी प्रतिनिधित्व करती है।

स्कन्द पुराण में देवी शीतला का वर्णन किया गया है। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया हैः

वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।

अर्थ - गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं।

शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।

मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतलाकी फुंसियों के चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।







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