गजाननं भूत गणधि सेवितम् - श्लोक का आदर और अर्थ

गजाननं भूतगणादि सेवितं
कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वर पादपङ्कजम् ॥

गजाननं भूतगणादि सेवितं
प्राचीनतम वेदों में भी गणेश भगवान का वंदन किया गया है, जो सभी भूतगणों की सेवा करते हैं।

कपित्थजम्बूफलसार भक्षितम्
गणेश भगवान का प्रिय भोजन कपित्थ और जम्बू फल की रसिकता से भरा होता है।

उमासुतं शोकविनाशकारणम्
उमा देवी के पुत्र होने से वह सभी दुःखों का नाश करने वाले होते हैं।

नमामि विघ्नेश्वर पादपङ्कजम्
मैं विघ्नेश्वर भगवान के पादकमल की प्रार्थना करता हूं।

अर्थ

इस श्लोक में, श्री गणेश भगवान की महिमा और महत्वपूर्ण गुणों का वर्णन किया गया है। गणेश भगवान को "गजानन" कहा गया है क्योंकि उनके मुखका आकार एक हाथी के समान होता है। वे भूतगणों की सेवा करते हैं, जिन्हें "भूतगणादि सेवितं" कहा गया है।

इसके अलावा, उनकी प्रिय भोजन की प्रशंसा की गई है, जिनमें कपित्थ और जम्बू फल की रसिकता सहित होती है। उनके माता पिता शिव और उमा के पुत्र होने के कारण वे सभी शोकों को नष्ट करने में सक्षम होते हैं, जिसे "उमासुतं शोकविनाशकारणम्" कहा गया है।

इस श्लोक के अंत में, गणेश भगवान के पादकमल की प्रार्थना की गई है, जिसके साथ "नमामि विघ्नेश्वर पादपङ्कजम्" लिखा है। इसके माध्यम से शिष्य यह प्रकट करता है कि वह विघ्नेश्वर भगवान की पूजा करता है और उनके पादकमल की सेवा में निरंतर रहता है।









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