

पर्यूषण पर्व, जैन धर्म का एक अत्यंत पवित्र और महत्त्वपूर्ण पर्व है। इसे आत्मा की शुद्धि, तपस्या, क्षमा और आत्मसंयम का पर्व कहा जाता है। जब यह पर्वारम्भ होता है तो प्रत्येक जैन अनुयायी अपने जीवन में एक नए संकल्प के साथ आत्म-निरीक्षण और साधना के मार्ग पर अग्रसर होता है।
पर्यूषण पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आत्मा को सांसारिक बंधनों से मुक्त करने और उसे शुद्ध बनाने का अवसर है। इन दिनों में जैन साधु-साध्वियां गहन तपस्या करते हैं और गृहस्थ लोग भी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे व्रतों का पालन करते हैं।
जब पर्यूषण का आरम्भ होता है, तो यह हमें स्मरण कराता है कि हम जीवन के कितने कार्य व्यर्थ की दौड़-भाग में गंवा देते हैं। यह पर्व हमें रुककर अपने भीतर झाँकने का अवसर देता है। यह समय है जब हम अहंकार, क्रोध, लोभ, मोह और द्वेष जैसे विकारों को त्यागकर आत्मा की ओर लौट सकते हैं।
पर्यूषण पर्व का सबसे बड़ा संदेश है — “क्षमापना”। इस पर्व के आरम्भ से ही साधक अपने मन में यह संकल्प करते हैं कि वे सभी जीवों से क्षमा माँगेंगे और दूसरों को भी क्षमा करेंगे। यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्चा सुख न धन में है, न मान-सम्मान में, बल्कि दूसरों को क्षमा करने और शांति से जीने में है।
जब पर्यूषण पर्वारम्भ होता है तो वातावरण में एक अलग ही दिव्यता महसूस होती है। मंदिरों में भक्ति-भाव, स्वाध्याय, और तपस्या की गूंज सुनाई देती है। यह पर्व हमें यह प्रेरणा देता है कि जीवन क्षणभंगुर है, और सच्चा ध्येय आत्मा की मुक्ति ही है।
निष्कर्ष
पर्यूषण पर्व का आरम्भ केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह जीवन को नई दिशा देने वाला पर्व है। यह पर्व हमें आत्मशुद्धि, क्षमा, संयम और करुणा की ओर ले जाता है। सचमुच, पर्यूषण पर्वारम्भ एक आत्मिक यात्रा का शुभारम्भ है।