भगवद गीता अध्याय 5, श्लोक 21

बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् |
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते || 21 ||

अर्थ: जो बाहरी इन्द्रिय सुखों से आसक्त नहीं हैं वे स्वयं में दिव्य आनंद का अनुभव करते हैं। योग के माध्यम से भगवान के साथ एक होने के कारण वे अनंत सुख का अनुभव करते हैं।

शब्द से शब्द का अर्थ:

बाह्य-स्पर्शेषु– बाह्य इन्द्रिय सुख;
असक्त-आत्मा– जो अनासक्त हैं;
विन्दति– खोजो;
आत्मनि– आत्मा में;
यत्– जो;
सुखम्– आनंद;
सः– वह व्यक्ति;
ब्रह्म-योग युक्त-आत्मा– वे जो योग के द्वारा भगवान से संयुक्त हैं;
सुखम्– सुख;
अक्षयम्– असीमित;
अश्नुते– अनुभव करता है |





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