भगवद गीता अध्याय 5, श्लोक 28

यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायण: |
विगतेच्छाभयक्रोधो य: सदा मुक्त एव स: || 28 ||

अर्थ: जिसने अपनी इंद्रियों, मन और बुद्धि को संयमित कर लिया है, और जिसका अंतिम लक्ष्य मुक्ति है, जो इच्छा, भय और क्रोध से रहित है; वह व्यक्ति भी साधु है, वह सदा मुक्त है।

संस्कृत शब्द का हिंदी में अर्थ:

यत-संयमित;
इन्द्रिय-इन्द्रियाँ;
मन:-मन;
बुद्धिः-बुद्धि;
मुनिः-योगी;
मोक्ष-मुक्ति;
परायणः-समर्पित;
विगत-मुक्त;
इच्छा–कामनाएँ;
भय-डर;
क्रोधः-क्रोध;
यः-जो;
सदा-सदैव;
मुक्तः-मुक्ति;
एव–निश्चय ही;
सः-वह व्यक्ति।



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