हिंदू नव वर्ष 2025

महत्वपूर्ण जानकारी

  • हिन्दू नववर्ष 2025, विक्रमी संवत 2082
  • रविवार, 30 मार्च 2025
  • प्रतिपदा तिथि आरंभ: 29 मार्च 2025 को शाम 04:27 बजे
  • प्रतिपदा तिथि समाप्त: 30 मार्च 2025 दोपहर 12:49 बजे
  • संवत्सर - हिंदू वर्ष का नाम

नव वर्ष पूरे विश्व में एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। विश्व में अलग-अगल स्थानों पर नव वर्ष की तिथि भी अलग-अगल होती है। विभिन्न सम्प्रदायों के नव वर्ष समारोह भी भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है।

भारत में भी नव वर्ष के तिथियों में भिन्नता है, अलग-अगल राज्यों में या ऐसा कहा जाये कि अलग-अलग समुदाय में नव वर्ष के तिथियों में भिन्नता है। उत्तर भारत के हिन्दू समुदाय में नव वर्ष चैत्र की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नव वर्ष का उत्सव मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 22 मार्च 2023 के दिन है। हिन्दू धर्म में इस दिन को वर्ष का सबसे शुभ दिन माना जाता है। हिन्दू नव वर्ष एक उत्सव का दिन होता है।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व :

हिन्दू नव वर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा मनाते है इसके पिछले कई ऐतिहासिक महत्व है। यह त्योहार पौराणिक दिन से जुड़ा हुआ है इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं।

हिन्दू नव वर्ष मनाने के कई ऐतिहासिक महत्व है जिनकों हम निम्नलिखित कारणों से जान सकते है, जो इस प्रकार हैं-

  • इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।
  • सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।
  • प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है।
  • शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है।
  • राजा विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। विक्रम संवत की स्थापना की ।
  • युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।

भारतीय नव वर्ष

भारत में अलग-अलग राज्यों में नव वर्ष की तिथियां भिन्न होती है और अलग अगल नाम से नव वर्ष का उत्सव मनाया जाता है। महाराष्ट्र में नव वर्ष को गुड़ी पांडव के रूप में जाना जाता है जो मार्च व अप्रैल में आता है। पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाई जाती है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार 14 मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। गोवा में इस दिन को हिंदू समुदाय कोंकणी के नाम से मनाते है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना राज्य में इस दिन को उगादी के नाम से मनाते है। कश्मीर में कश्मीरी पंडितों इस दिन को नवरेह (19 मार्च) के नाम से जाना जाता है। बंगाल में इस अवसर को नबा बरसा के रूप में, असम में बिहू के रूप में, केरल में विशु के रूप में, तमिलनाडु में पुतुहांडु के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी में नव वर्ष दिवाली के दिन मनाते है। गुजरात में दिवाली के दूसरे दिन नव वर्ष होता है। बंगाली नया साल पोहेला बैसाखी 14 या 15 अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नया साल होता है।







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