
परमा एकदशी व्रत भगवान विष्णु का आर्शीवाद पाने के लिए किया जाता है। परमा एकदशी व्रत अधिक मास के दौरान आता है। अधिक मास को अधिमास, मलमास और पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। अधिक मास की कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकदशी को परमा एकादशी कहा जाता है।
एकादशी का व्रत सब पापों का नाश करने वाला तथा सम्पूर्ण मनोवन्छित फलों को देनेवाला व्रत है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को विशेष प्रिय है। इस व्रत को समाज का कोई भी वर्ग का व्यक्ति जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और स्त्री - जो भी भक्तिपूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उनको यह मोक्ष देने वाला है। यह मनुष्यों को उनकी समस्त अभीष्ट वस्तुएँ प्रदान करता है।
एकादशी को सुबह उठकर शौच-स्नान के अनन्तर गन्ध, पुष्प आदि सामग्रियों द्वारा भगवान् विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करके इस प्रकार कहे-
एकादश्यां निराहारः स्थित्वाह्नत्रद्याहं परेऽहनि।
भोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत।।
अर्थ- कमलनयन अच्युत! टाज एकादशी को निराहार रहकर मैं दूसरे दिन भोजन करूँगा। आप मेरे लियये शरणदाता हों।
पारण का अर्थ है उपवास तोड़ना। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद एकादशी का पारण किया जाता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण करना आवश्यक है जब तक कि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त न हो जाए। द्वादशी के दिन पारण न करना अपराध के समान है।
श्री युधिष्ठिरजी बोले कि - हे जनार्दन ! अब आप अधिक (लौंद) माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम तथा उसके व्रत की विधि बतलाइये। श्रीकृष्ण बोले कि हे राजन ! इस एकादशी का नाम परमा है। इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट होकर इस लोक में तथा परलोक में मुक्ति मिलती है। इसका व्रत पूर्वोक्त विधि से करना चाहिये और भगवान नरोत्तम की धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिये। इस एकादशी के विषय की एक मनोहर कथा जो कि महर्षियों के साथ काम्पिल्य नगरी में हुई थी, कहता हूँ। आप ध्यानपूर्वक श्रवण कीजिए। काम्पिल्य नगर में सुमेधा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। इसकी पवित्रा नाम की स्त्री अत्यन्त पवित्र तथा पतिव्रता थी। वह किसी पूर्वजन्म के कारण अत्यंत दरिद्र थी। उसे भिक्षा मांगने पर भी भिक्षा नहीं मिलती थी। वह सदैव वस्त्रों से रहित होते हुए भी अपने. पति की सेवा करती रहती। वह अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी रहती थी और पति से कभी किसी वस्तु के लिए नहीं कहती थी । अधिक पढ़ें...