परमा एकादशी 2026

महत्वपूर्ण जानकारी

  • परमा एकादशी व्रत 2026
  • गुरुवार, 11 जून 2026
  • एकादशी व्रत प्रारंभ: 11 जून 2026 प्रातः 12:58 बजे
  • एकादशी व्रत समाप्ति: 11 जून 2026 रात्रि 10:36 बजे

परमा एकदशी व्रत भगवान विष्णु का आर्शीवाद पाने के लिए किया जाता है। परमा एकदशी व्रत अधिक मास के दौरान आता है। अधिक मास को अधिमास, मलमास और पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। अधिक मास की कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकदशी को परमा एकादशी कहा जाता है।

आध्यात्मिक महत्व:

परमा एकादशी, हिंदू चंद्र कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो आध्यात्मिक विकास और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए समर्पित विभिन्न शुभ दिनों में एक विशेष स्थान रखता है। भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाने वाला यह पवित्र अवसर विश्वासियों को अपने भीतर से जुड़ने और परमात्मा के साथ एक मजबूत बंधन बनाने का मौका प्रदान करता है।

परमा एकादशी: सर्वोच्च व्रत:

परमा एकादशी, जिसे अक्सर "सर्वोच्च एकादशी" कहा जाता है, को सबसे शक्तिशाली और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करने वाली एकादशियों में से एक माना जाता है। परमा एकादशी व्रत अधिकमास के दौरान आता है। अधिक मास को अधिक मास, मल मास और पुरूषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। अधिकमास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को परमा एकादशी कहा जाता है।

आध्यात्मिक महत्व:

एकादशी का व्रत सब पापों का नाश करने वाला तथा सम्पूर्ण मनोवन्छित फलों को देनेवाला व्रत है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को विशेष प्रिय है। इस व्रत को समाज का कोई भी वर्ग का व्यक्ति जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और स्त्री - जो भी भक्तिपूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उनको यह मोक्ष देने वाला है। यह मनुष्यों को उनकी समस्त अभीष्ट वस्तुएँ प्रदान करता है।

परमा एकादशी का अनुष्ठान

एकादशी को सुबह उठकर शौच-स्नान के अनन्तर गन्ध, पुष्प आदि सामग्रियों द्वारा भगवान् विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करके इस प्रकार कहे-

एकादश्यां निराहारः स्थित्वाह्नत्रद्याहं परेऽहनि।
भोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत।।

अर्थ- कमलनयन अच्युत! टाज एकादशी को निराहार रहकर मैं दूसरे दिन भोजन करूँगा। आप मेरे लियये शरणदाता हों।

पारण का अर्थ है उपवास तोड़ना। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद एकादशी का पारण किया जाता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण करना आवश्यक है जब तक कि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त न हो जाए। द्वादशी के दिन पारण न करना अपराध के समान है।

ईश्वरीय कृपा एवं आशीर्वाद:

ऐसा माना जाता है कि परमा एकादशी एक ऐसा समय है जब दैवीय कृपा प्रचुर होती है, और सच्ची प्रार्थनाओं का उत्तर दिया जाता है। भक्त पिछले गलत कामों के लिए माफ़ी मांगते हैं और आध्यात्मिक प्रगति और ज्ञान की कामना करते हैं।

उपवास और डिटॉक्सीफाई:

परमा एकादशी के दौरान उपवास करना आत्म-अनुशासन और आत्म-नियंत्रण का कार्य माना जाता है। शरीर को विषैले पदार्थों से मुक्त करवाना, पोषण देना और आराम पहुंचाना डिटॉक्सिफिकेशन कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि भोजन से परहेज करने से शरीर और दिमाग को डिटॉक्सीफाई करने में मदद मिलती है, जिससे व्यक्ति अपनी ऊर्जा को आध्यात्मिक गतिविधियों की ओर ले जा सकते हैं।

निष्कर्ष:

परमा एकादशी, "सर्वोच्च एकादशी", गहरे आध्यात्मिक महत्व का दिन है, जो व्यक्तियों को अपने मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करने का अवसर प्रदान करता है। उपवास, प्रार्थना और ध्यान के माध्यम से, विश्वासी परमात्मा से जुड़ सकते हैं, आशीर्वाद मांग सकते हैं और अपने आध्यात्मिक विकास को पोषित कर सकते हैं। यह पवित्र अनुष्ठान आध्यात्मिकता के मार्ग पर आत्म-अनुशासन, भक्ति और आंतरिक शांति की खोज के महत्व की याद दिलाता है।

परमा एकादशी व्रत कथा

श्री युधिष्ठिरजी बोले कि - हे जनार्दन ! अब आप अधिक (लौंद) माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम तथा उसके व्रत की विधि बतलाइये। श्रीकृष्ण बोले कि हे राजन ! इस एकादशी का नाम परमा है। इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट होकर इस लोक में तथा परलोक में मुक्ति मिलती है। इसका व्रत पूर्वोक्त विधि से करना चाहिये और भगवान नरोत्तम की धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिये। इस एकादशी के विषय की एक मनोहर कथा जो कि महर्षियों के साथ काम्पिल्य नगरी में हुई थी, कहता हूँ। आप ध्यानपूर्वक श्रवण कीजिए। काम्पिल्य नगर में सुमेधा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। इसकी पवित्रा नाम की स्त्री अत्यन्त पवित्र तथा पतिव्रता थी। वह किसी पूर्वजन्म के कारण अत्यंत दरिद्र थी। उसे भिक्षा मांगने पर भी भिक्षा नहीं मिलती थी। वह सदैव वस्त्रों से रहित होते हुए भी अपने. पति की सेवा करती रहती। वह अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी रहती थी और पति से कभी किसी वस्तु के लिए नहीं कहती थी । अधिक पढ़ें...



मंत्र


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न


परमा एकादशी का व्रत करने का क्या महत्व है?

ऐसा माना जाता है कि परमा एकादशी मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करती है, जिससे आध्यात्मिक उत्थान होता है। यह आध्यात्मिक पथ पर दिव्य आशीर्वाद, सुरक्षा और विकास प्राप्त करने का समय है।


परमा एकादशी का उपवास आध्यात्मिक विकास में कैसे योगदान देता है?

परमा एकादशी के दौरान उपवास करना आत्म-अनुशासन और सांसारिक इच्छाओं से वैराग्य का कार्य माना जाता है। यह शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करता है, जिससे यह आध्यात्मिक अभ्यास और आत्मनिरीक्षण के लिए अनुकूल बनता है।







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