

प्रदोष व्रत हिन्दुओं के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत हैं। यह व्रत प्रत्येक मास दो बार पड़ता है। इस व्रत को करने से भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है। प्रदोष व्रत एक पवित्र उपवास का दिन माना जाता हैं। प्रदोष व्रत, हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक चंद्र पखवाड़े में ‘त्रयोदशी’ को पड़ता है। यदि प्रदोष व्रत शुक्रवार को पड़ता है तो इस व्रत को ‘शुक्र प्रदोष व्रत’ कहा जाता है। शुक्र प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की कृपा बनी रहती हैं। इस दिन श्वेत रंग तथा खीर जैसे पदार्थ ही सेवन करना चाहिए।
यदि प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन पड़ता है तो उसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है।
हिंदू धर्मग्रंथों में स्कंद पुराण में शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व बताया गया है। साथ ही शिव पुराण में शुक्र प्रदोष व्रत के कई गुना फायदे बताए गए हैं। शुक्र प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव और मां पार्वती उन्हें सभी आध्यात्मिक और सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति का आशीर्वाद देंगे। इस दिन श्वेत रंग तथा खीर जैसे पदार्थ ही सेवन करना महत्वपूर्ण होता हैं।
एक नगर में तीन मित्र रहते थे। तीनों में ही घनिष्ट मित्रता थी। उनमें एक राजकुमार, दूसरा ब्राह्मण पुत्र और तीसरा सेठ पुत्र था। राजकुमार व ब्राह्मण पुत्र का विवाह हो चुका था और सेठ पुत्र का विवाह के बाद गौना नहीं हुआ था।
एक दिन तीनों मित्र आपस में स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे। ब्राह्मण पुत्र ने नारियों की प्रशंसा करते हुए कहा, “नारी-हीन घर भूतों का डेरा होता है।”
सेठ-पुत्र ने यह वचन सुनकर अपनी पत्नी लाने का तुरन्त निश्चय किया। सेठ का पुत्र अपने घर गया और अपने माता-पिता से अपना निश्चय बताया। उन्होंने बेटे से कहा कि शुक्र देवता डूबे हुए हैं। इन दिनों बहु-बेटियों को उनके घर से विदा कर लाना शुभ नहीं, अतः शुक्रोदय के बाद तुम अपनी पत्नी को विदा करा लाना।
सेठ के पुत्र अपने माता पिता की बात नहीं मानी और अपनी ससुराल चला गया। सास-ससुर ने सेठ के पुत्र का बहुत समझाने की कोशिश की किन्तु वह नहीं माना। अतः उन्हें विवश हो अपनी कन्या को विदा करना पड़ा।
ससुराल से विदा होकर पति-पत्नी नगर से बाहर निकले ही थे कि उनकी बैलगाड़ी का पहिया टूट गया और एक बैल की टाँग टूट गयी। पत्नी को भी काफी चोट आई। सेठ-पुत्र ने आगे चलने का प्रयत्न जारी रखा। तभी डाकुओं से भेंट हो गई और वे धन-धान्य लूटकर ले गये। सेठ का पुत्र पत्नी सहित रोता पीटता अपने घर पहुँचा। जाते ही उसे साँप ने डस लिया। उसके पिता ने वैद्यों को बुलाया। उन्होंने देखने के बाद घोषणा की कि आपका पुत्र तीन दिन में मर जाएगा।
उसी समय इस घटना का पता ब्राह्मण-पुत्र को लगा। उसने सेठ से कहा कि आप अपने लड़के को पत्नी सहित बहू के घर वापस भेज दो। यह सारी बाधाएँ इसलिए आयी हैं कि आपका पुत्र शुक्रास्त में पत्नी को विदा करा लाया है। यदि यह वहाँ पहुँच जायेगा तो बच जाएगा।
सेठ ने, ब्राह्मण पुत्र की मानी और अपनी पुत्रवधु व पुत्र को वापिस पुत्रवधु के घर भेज दिया। घर पहुँचते ही सेठ पुत्र की हालत ठीक होनी आरम्भ हो गई। तत्पश्चात उन्होंने शुक्र त्रयोदशी उपवास करना व शुक्र प्रदोष व्रत कथा पढ़ना आरंभ किया, जिससे शेष जीवन सुख आनन्दपूर्वक व्यतीत हो गया और अन्त में वह पति-पत्नी दोनों स्वर्ग लोक को गये। शुक्रवार प्रदोष व्रत कथा जो कोई पढ़ता सुनता है, उसे सभी इच्छित भोगों की प्राप्ति होती है।
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
शुक्रवार, 16 जनवरी 2026
शुक्र प्रदोष व्रत प्रारंभ: 15 जनवरी 2026 रात्रि 08:16 बजे
शुक्र प्रदोष व्रत समाप्त: 16 जनवरी 2026 रात्रि 10:21 बजे
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
शुक्रवार, 30 जनवरी 2026
शुक्र प्रदोष व्रत प्रारम्भ: 30 जनवरी 2026 प्रातः 11:09 बजे
शुक्र प्रदोष व्रत समाप्त: 31 जनवरी 2026 प्रातः 08:25 बजे
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
शुक्रवार, 12 जून 2026
शुक्र प्रदोष व्रत आरंभ: 12 जून 2026 को शाम 07:36 बजे
शुक्र प्रदोष व्रत समाप्ति: 13 जून 2026 बजे 04:07 अपराह्न
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2026
शुक्र प्रदोष व्रत आरंभ: 23 अक्टूबर 2026 दोपहर 02:35 बजे
शुक्र प्रदोष व्रत समाप्त: 24 अक्टूबर 2026 को दोपहर 01:36 बजे
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
शुक्रवार, 06 नवंबर 2026
शुक्र प्रदोष व्रत आरंभ: 06 नवंबर 2026 सुबह 10:30 बजे
शुक्र प्रदोष व्रत समाप्त: 07 नवंबर 2026 प्रातः 10:47 बजे
यदि प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन पड़ता है तो इस व्रत को 'शुक्र प्रदोष व्रत' कहा जाता है।
प्रदोष व्रत शुक्रवार, 16 जनवरी 2026 को है।