

ये वे दम्पति हैं जिनके नाम आज भी आदर्श गृहस्थ जीवन का प्रतीक माने जाते हैं:
महर्षि वशिष्ठ और पत्नी अरुंधती:
संबंध का सार: अटूट आदर्श और पवित्रता। महर्षि वशिष्ठ, भगवान राम के गुरु थे, जिन्होंने मर्यादा और धर्म का ज्ञान दिया। उनकी पत्नी अरुंधती इतनी पवित्र मानी जाती हैं कि सप्तऋषि मंडल में उन्हें एक तारे के रूप में स्थान मिला है। विवाह के दौरान अरुंधती दर्शन की परंपरा आज भी है—यह दम्पति धैर्य और समर्पण का सर्वोच्च प्रतीक हैं।
महर्षि अत्रि और पत्नी अनसूया:
संबंध का सार: निष्ठा और तप की शक्ति। अनसूया का नाम आते ही पतिव्रता धर्म और पवित्रता की शक्ति याद आती है। अनसूया के तप के प्रभाव से स्वयं त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को उनके सामने बालक रूप में प्रकट होना पड़ा। यह दिखाता है कि एक पत्नी का नैतिक बल उसके पति के तप से भी अधिक शक्तिशाली हो सकता है।
महर्षि गौतम और पत्नी अहल्या:
संबंध का सार: भूल, पश्चाताप और मुक्ति। यह कथा हमें सिखाती है कि जीवन में कितनी भी बड़ी भूल हो जाए, पश्चाताप और पति का विश्वास आपको मुक्ति दिला सकता है। अहल्या की कथा दर्शाती है कि समाज के तिरस्कार के बावजूद, सत्य अंत में सामने आता है।
इन ऋषियों ने जहाँ धर्म और ज्ञान का विस्तार किया, वहीं उनकी पत्नियों ने परिवार की नींव को संभाला:
ऋषि याज्ञवल्क्य और पत्नियाँ मैत्रेयी और कात्यायनी:
संबंध का सार: ज्ञान और गृहस्थी का विभाजन। याज्ञवल्क्य ने दो पत्नियाँ रखीं। मैत्रेयी को उन्होंने ब्रह्मज्ञान और आध्यात्मिकता दी, जबकि कात्यायनी ने उनकी गृहस्थी संभाली। यह दम्पति दिखाता है कि जीवन के दो अलग-अलग पहलुओं—आध्यात्मिक और सांसारिक—को कैसे अलग-अलग शक्तियों द्वारा साधा जा सकता है।
महर्षि व्यास और पत्नी वितरिणी:
संबंध का सार: लेखन और सहयोग। वेदव्यास ने महाभारत और वेदों का संकलन किया। उनकी पत्नी वितरिणी ने उनके इस विशाल कार्य के दौरान घर और परिवार की सारी ज़िम्मेदारियाँ संभालीं, जिससे व्यास जी एकाग्र होकर मानवता को ज्ञान दे सके।
महर्षि दधीचि और पत्नी स्वर्ची:
संबंध का सार: सर्वोच्च बलिदान। दधीचि ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी अस्थियों का दान कर दिया था। इस सर्वोच्च बलिदान में उनकी पत्नी स्वर्ची का मौन समर्थन ही उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी।
इन ऋषियों ने भारतीय संस्कृति की नींव को मज़बूत किया:
महर्षि भृगु और पत्नी ख्याति: भृगु ऋषि के वंश ने कई महान संतों और ज्योतिष ज्ञान को जन्म दिया। ख्याति ने इस गौरवशाली वंश को आगे बढ़ाया।
महर्षि पुलह और पत्नी क्षमा (वक्षमा): पुलह ऋषि ने तपस्या के माध्यम से क्षमा के महत्व को स्थापित किया। उनकी पत्नी क्षमा (या वक्षमा) शांति और धैर्य का प्रतीक थीं।
महर्षि कश्यप और पत्नी अदिति: कश्यप ऋषि भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े वंशों में से एक के संस्थापक हैं। उनकी पत्नी अदिति से ही देवताओं (आदित्य) का जन्म हुआ। अदिति देवत्व और पोषण का प्रतीक हैं।
ये दम्पति अपने जीवन की विशिष्ट परिस्थितियों के कारण अमर हो गए:
महर्षि च्यवन और पत्नी सुकन्या:
संबंध का सार: आयु और सौंदर्य पर प्रेम की जीत। राजकुमारी सुकन्या ने गलती से अंधे और बूढ़े च्यवन ऋषि की आँखें फोड़ दी थीं। पश्चाताप में उन्होंने ऋषि से विवाह कर लिया। सुकन्या की निस्वार्थ सेवा और समर्पण से प्रसन्न होकर, देवताओं ने ऋषि च्यवन को फिर से युवा और सुंदर बना दिया। यह कथा सिखाती है कि सच्चा प्रेम बाहरी सुंदरता को नहीं देखता।
महर्षि भारद्वाज और पत्नी सुसंगता:
संबंध का सार: ज्ञान और वंश की महानता। महर्षि भारद्वाज व्याकरण, आयुर्वेद और धनुर्वेद के महान ज्ञाता थे। उनकी पत्नी सुसंगता ने उन्हें वह स्थिर पारिवारिक आधार दिया, जिसके कारण उनके पुत्र द्रोणाचार्य (महाभारत के महान गुरु) जैसे वीर और ज्ञानी ने जन्म लिया।
महर्षि कपिल और माँ देवहूति:
संबंध का सार: पुत्र-गुरु का रिश्ता। महर्षि कपिल स्वयं भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं और सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं। उनकी पत्नी की जगह, उनकी माता देवहूति का नाम आता है, जिन्हें कपिल ने योग और मोक्ष का ज्ञान देकर उनकी मुक्ति कराई। यह अनूठा संबंध शिष्यत्व और माँ के प्रति पुत्र के परम कर्तव्य को दर्शाता है।
ये दम्पति हमें सिखाते हैं कि हर कार्य में साथ कैसे दिया जाता है:
महर्षि उद्दालक और पत्नी सुवर्णा:
संबंध का सार: आदर्श गुरुभक्ति और तत्वज्ञान। महर्षि उद्दालक (आरुणि) ने अपने गुरु के प्रति अटूट निष्ठा दिखाई थी। उनकी पत्नी सुवर्णा के साथ उनका जीवन सरल और सात्विक था। उद्दालक ने ही अपने पुत्र श्वेतकेतु को 'तत्त्वमसि' (वह तुम हो) का महान ज्ञान दिया।
महर्षि गालव और पत्नी सुकीर्ति:
संबंध का सार: शिष्य का समर्पण और पत्नी का धैर्य। महर्षि विश्वामित्र के शिष्य गालव की गुरु दक्षिणा के लिए की गई कठिन यात्रा में उनकी पत्नी सुकीर्ति (माधवी के माध्यम से) का धैर्य ही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी।
महर्षि वामदेव और पत्नी अन्विता:
संबंध का सार: जन्म से ही ज्ञान की प्राप्ति। महर्षि वामदेव ऐसे ऋषि थे जिन्हें गर्भ में ही पूर्वजन्मों का ज्ञान था। उनकी पत्नी अन्विता ने उनके इस असाधारण व्यक्तित्व और तपस्या को सहारा दिया, जिससे वे ऋषि पद पर प्रतिष्ठित हुए।
महर्षि कुशाश्व और पत्नी अनुतमा:
संबंध का सार: सादगी और एकांत तपस्या। इन ऋषियों का जीवन अत्यंत सादा और तपस्या पर केंद्रित था। अनुतमा ने कुशाश्व की तपस्या में कभी बाधा नहीं डाली, बल्कि मौन रहकर हर सुख-सुविधा का त्याग किया।
इन सभी ऋषि-पत्नियों ने हमें सिखाया कि एक सफल जीवन केवल तप या ज्ञान से नहीं, बल्कि प्रेम, साझेदारी और घर को संभालने की शक्ति से बनता है। हर महान पुरुष के पीछे एक स्त्री का अदृश्य त्याग हमेशा मौजूद होता है।