बहुला चौथ का व्रत भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। इस व्रत को माताएँ अपने पुत्रों कर रक्षा हेतु करती हैं। इस दिन गेहूँ एवं चावल से निर्मित वस्तुएँ वर्जित हैं। गाय तथा सिंह की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजन करने का विधान प्रचलित है। इस व्रत को गौ पूजा व्रत भी कहा जाता है। गौ उत्पादों का सेवन निषेध माना जाता हैं। ऐसा माना जाता है कि इस गाय के दूध पर केवल उसके बछड़ों का अधिकार होता है। इस दिन व्रत करने से निंसतान स्त्री को सन्तान की प्राप्ति होती है।
बहुत चौथ के अवसार पर सुबह नहा कर स्वच्छ कपड़े पहनना चाहिए। अगल आप के घर में गाय है तो उसका स्थान का साफ करना चाहिए और उसके बछड़े को गाये के पास छोड़ देना चाहिए। पूर दिन उपवास रखने के बाद संध्या में गणेश, गौरी माता, श्रीकृष्ण एवं गौ माता का विधिवत पूजन करना चाहिए। उपवास के दौरान ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ के मंत्र का जाप करना चाहिए।
बहुला नाम की एक गाय थी जो उसके बछड़े को खिलाने के लिए घर वापस आ रही थी। घर जाने के रास्ते में, उसे शेर का सामना करना पड़ा। बहुला मृत्यु से डर गयी लेकिन पर्याप्त साहस के साथ उसने शेर से कहा कि उसे अपने बछड़े को दूध पीलाना है। बहुला ने शेर से कहा कि वह उसे एक बार जाने दे वह बछड़े को दूध पिलाकर और उसके बाद वापस आ जाएगी, इसके बाद शेर उसे खा सकता है। शेर ने उसे मुक्त कर दिया और उसकी वापस आने की प्रतीक्षा की ।
बहुला ने अपने बछड़े को खिलाने के बाद वापसी की जिससे शेर हैरान हो गया। वह अपने बच्चे के प्रति गाय की प्रतिबद्धता से काफी चैंक गया और प्रभावित हुआ, इसलिए उसने उसे मुक्त कर दिया और उसे वापस जाने दिया।
यह दर्शाता है कि शेर की शारीरिक शक्ति, क्रोध और जुनून को भी, अपने बछड़े के प्रति गाय की देखभाल और प्यार के सामने झुकना पड़ा। उस विशेष दिन से, भक्त गाय के दूध का त्याग करके इसे केवल बछड़ों के लिए बचाते हैं और बहुला चतुर्थी का उत्सव मनाते हैं। यह पूजा का प्रतीक है जिसे देवताओं से आशीर्वाद पाने के लिए किया जाता है।