

हिन्दू धर्म में, जब भी कोई पूजा या विवाह जैसा शुभ कार्य होता है, तो सबसे पहले 'गोत्र' पूछा जाता है। गोत्र केवल आपका उपनाम (Surname) नहीं है, बल्कि यह वह पहचान है जो आपको हजारों साल पुरानी ऋषि परंपरा से जोड़ती है।
यह जानना दिलचस्प है कि यह परंपरा कैसे शुरू हुई और आपका संबंध किन महान संतों से है।
गोत्र शब्द का मूल रूप से अर्थ होता है कुल या वंश परंपरा।
शुरुआत में, गोत्र का संबंध मुख्य रूप से ब्राह्मणों के 7 (या 8) वंशों से था।
मान्यता है कि सभी ब्राह्मण अपनी उत्पत्ति 7 ऋषियों से मानते हैं।
गोत्र की यह महान परंपरा सप्तऋषियों से शुरू हुई, जो भारतीय संस्कृति के आधार माने जाते हैं। ये वे आदि गुरु हैं जिनसे ज्ञान और धर्म की परंपरा आगे बढ़ी:
| गोत्र के मूल ऋषि | उनका योगदान |
| महर्षि अत्रि | ये ब्रह्मा के मानस पुत्र, सप्तऋषियों में से एक और दत्तात्रेय के पिता थे। इनके वंशज आज भी ज्ञान और तप की परंपरा का पालन करते हैं। |
| महर्षि भारद्वाज | ये द्रोणाचार्य के पिता और वेदों के ज्ञाता थे। इनका गोत्र ज्ञान, आयुर्वेद और धनुर्वेद की परंपरा से जुड़ा है। |
| महर्षि भृगु | ये महान ऋषि, ज्योतिष के ज्ञाता और कई महान संतों के जनक थे। इनका वंश बलिदान और तपस्या के लिए प्रसिद्ध है। |
| महर्षि गौतम | ये न्यायशास्त्र और दर्शन के महान ज्ञाता थे। इनका गोत्र सत्य, न्याय और तपस्या की भावना को आगे बढ़ाता है। |
| महर्षि कश्यप | ये सृष्टि के सबसे बड़े वंश के संस्थापक हैं और देवताओं (अदिति) और दैत्यों (दिति) दोनों के जनक माने जाते हैं। |
| महर्षि वशिष्ठ | ये भगवान राम के गुरु और मर्यादा पुरुषोत्तम के शिक्षक थे। इनका गोत्र धैर्य, पवित्रता और अटूट आदर्श का प्रतीक है। |
| महर्षि विश्वामित्र | ये वेदों के महान ज्ञाता और गायत्री मंत्र के द्रष्टा माने जाते हैं। इनका गोत्र साहस, तप और नवीन ज्ञान की खोज का प्रतीक है। |
आठवाँ गोत्र: मूल सात ऋषियों के बाद महर्षि अगस्त्य को आठवें गोत्र के रूप में जोड़ा गया। इसके बाद समय के साथ गोत्रों की संख्या बढ़ती गई।
गोत्र पूछना केवल धार्मिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे सामाजिक और वैज्ञानिक कारण छिपे थे:
वंश की पहचान: गोत्र हमें बताता है कि आप किस मूल ऋषि की ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
समान गोत्र में विवाह निषेध (Exogamy): गोत्र का सबसे बड़ा महत्व विवाह में है। एक ही गोत्र के लोगों को आपस में भाई-बहन माना जाता है, क्योंकि वे एक ही ऋषि की संतान होते हैं। इसलिए, समान गोत्र में विवाह करने की अनुमति नहीं दी जाती, ताकि रक्त संबंध बहुत नज़दीक न हों और आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity) बनी रहे।
संस्कारों की सुरक्षा: गोत्र यह सुनिश्चित करता है कि परिवार उन विशेष संस्कारों, पूजा-पद्धतियों और परंपराओं को बनाए रखे, जो उनके आदि गुरु ऋषि ने शुरू की थीं।
संक्षेप में, गोत्र एक ऐसी कड़ी है जो हमें सीधे हमारे महान ऋषियों से जोड़ती है और हमें याद दिलाती है कि हम एक समृद्ध ज्ञान परंपरा का हिस्सा हैं।