

क्या आपने कभी भद्रा के बारे में सुना है, जिसका नाम किसी भी शुभ कार्य से पहले लिया जाता है? भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रा का समय शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है। आइए जानते हैं कि यह कौन थी और इसका महत्व क्या है।
भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और शनि की बहन हैं। पौराणिक कथाओं में भद्रा को ऐसा माना जाता था जो बने-बनाए शुभ कामों को बिगाड़ देती थीं। उनके इस स्वभाव के कारण हर कोई चिंतित रहता था, खासकर उनके पिता, सूर्य देव।
भद्रा के विध्वंसकारी स्वभाव से चिंतित होकर, सूर्य देव ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी से मदद माँगी। उन्होंने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि वे भद्रा को समझाएँ और उन्हें एक ऐसा स्थान दें जहाँ वह शांति से रह सकें और संसार के कार्यों में अधिक बाधा न डालें।
ब्रह्मा जी ने भद्रा को बड़े ही प्रेम से समझाया और उन्हें एक नियम बताया:
"अगर कोई तुम्हारे समय में (अर्थात भद्रा काल में) कोई शुभ काम करता है, तो तुम उसमें बाधा डाल सकती हो। लेकिन, जो लोग तुम्हारा समय छोड़कर (यानी भद्रा काल के अलावा) शुभ काम करते हैं, तुम उनके कामों में बाधा नहीं डालोगी।"
इस प्रकार, ब्रह्मा जी ने भद्रा को पंचांग (हिंदू कैलेंडर) में एक विशेष समय, यानी 'विष्टि करण' के रूप में स्थान दिया।
इसी कथा के कारण, ज्योतिष में भद्रा को एक अशुभ समय माना जाता है। कोई भी बड़ा या महत्वपूर्ण शुभ कार्य, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नई यात्रा की शुरुआत, या किसी नए व्यवसाय का उद्घाटन, भद्रा काल में नहीं किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस समय किए गए कार्यों में बाधाएँ आती हैं या वे सफल नहीं होते हैं।
इसलिए, जब भी कोई शुभ मुहूर्त निकाला जाता है, तो सबसे पहले भद्रा की उपस्थिति का विचार किया जाता है।
क्या आप अपने अगले शुभ कार्य के लिए भद्रा काल के बारे में जानना चाहेंगे?