महाभारत युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य के धोखे से मारे जाने पर अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हो गये।
जिसके कारण अश्वत्थामा बहुत दुखी और क्रोधित हो गया था और पांडव से अपने पिता कि मृत्यु का प्रतिशोध लेना चाहता था। युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने पांडव और उसनकी सेना का समाप्त करने के लिए एक बहुत ही भयानक अस्त्र छोड़ दिया। जिसका नाम ‘नारायण अस्त्र’ था।
इस अस्त्र का कोई भी प्रतिकार नही था, ना ही कोई भी व्यक्ति कर सकता था। यह ऐसा अस्त्र था, जिन लोगों के हाथ में हथियार हो और लड़ने के लिए कोशिश करता दिखे यह उसके मन में भी युद्ध का विचार होता तो उस पर अग्नि बरसाता था और तुरंत नष्ट कर देता था।
भगवान श्रीकृष्ण जी ने सेना को अपने अपने अस्त्र-शस्त्र छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर खड़े रहने का आदेश दिय और कहा मन में युद्ध करने का विचार भी न लाएं, यह उन्हें भी पहचान कर नष्ट कर देता है।
नारायण अस्त्र का धीरे धीरे अपना समय समाप्त होने पर अस्त्र शांत हो गया। इस तरह पांडव सेना की रक्षा हो गयी।
कभी-कभी हम दुसरों के प्रति अपने मन में इतना क्रूर विचार रखते है। हर समय युद्ध व किसी से लड़ने मे सफलता नहीं मिलती। सफलता मिलती है, समय व परिस्थिति के अनुसार अपने मन को शांत करके। इसलिए ईश्वर को सदैव अपने मन में स्थान दें और सदैव मन के अन्दर वास करायें ताकि आपका मन शांत रहें और दूसरों के प्रति प्यार बना रहें।