भारतीय संस्कृति में भगवान श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन अनेक स्तोत्रों, श्लोकों और भजनों में मिलता है। इनमें से एक प्रसिद्ध स्तोत्र है –
अच्युतं केशवं कृष्णं दामोदरं,
राम नारायणं जानकी वल्लभम्॥
इस श्लोक के माध्यम से भक्त भगवान के विभिन्न स्वरूपों की वंदना करते हैं।
यह श्लोक हमें सिखाता है कि परमात्मा एक ही हैं, परंतु उनकी लीलाएँ और स्वरूप अनेक हैं। कभी वे बालक बनकर यशोदा के लाड़ले दामोदर होते हैं, कभी मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनकर धर्म की स्थापना करते हैं, तो कभी विष्णु बनकर सृष्टि का पालन करते हैं।
भक्त जब इस स्तोत्र का पाठ करते हैं तो उनका मन भगवान की सभी लीलाओं और गुणों का स्मरण करता है। यही स्मरण उन्हें भक्ति, श्रद्धा और शांति प्रदान करता है।
“अच्युतं केशवं कृष्णं दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभम्” केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि ईश्वर की महिमा का संपूर्ण सार है। यह बताता है कि चाहे भगवान का कोई भी स्वरूप हो – वह हमारे रक्षक, आधार और सच्चे मार्गदर्शक हैं।