अच्युतं केशवं कृष्णं दामोदरं – श्रीकृष्ण भजन का महत्व और भगवान की महिमा

भारतीय संस्कृति में भगवान श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन अनेक स्तोत्रों, श्लोकों और भजनों में मिलता है। इनमें से एक प्रसिद्ध स्तोत्र है –

अच्युतं केशवं कृष्णं दामोदरं,
राम नारायणं जानकी वल्लभम्॥

इस श्लोक के माध्यम से भक्त भगवान के विभिन्न स्वरूपों की वंदना करते हैं।

श्लोक का अर्थ और भाव

  • अच्युतं – जो कभी न च्युत हों, अर्थात् कभी न गिरें और न ही नाश को प्राप्त हों। यह भगवान विष्णु का शाश्वत रूप है।
  • केशवं  – जिसने असुर केशी का वध किया और जिनके सुंदर केश हैं।
  • कृष्णं – जो अपनी दिव्य लीलाओं और सौंदर्य से समस्त जगत को आकर्षित करते हैं।
  • दामोदरं – जिन्हें माँ यशोदा ने रस्सी से उदर (कमर) में बाँधा था। यह भगवान के बालरूप और ममतामयी लीलाओं का स्मरण कराता है।
  • रामं  – जो बिना किसी दोष के हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम।
  • नारायणं – समस्त जीवों और ब्रह्मांड के आधार, जगत के पालनहार।
  • जानकी वल्लभम्  – सीता माता के प्रिय श्रीराम।

आध्यात्मिक संदेश

यह श्लोक हमें सिखाता है कि परमात्मा एक ही हैं, परंतु उनकी लीलाएँ और स्वरूप अनेक हैं। कभी वे बालक बनकर यशोदा के लाड़ले दामोदर होते हैं, कभी मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनकर धर्म की स्थापना करते हैं, तो कभी विष्णु बनकर सृष्टि का पालन करते हैं।

भक्त जब इस स्तोत्र का पाठ करते हैं तो उनका मन भगवान की सभी लीलाओं और गुणों का स्मरण करता है। यही स्मरण उन्हें भक्ति, श्रद्धा और शांति प्रदान करता है।

अच्युतं केशवं कृष्णं दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभम्” केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि ईश्वर की महिमा का संपूर्ण सार है। यह बताता है कि चाहे भगवान का कोई भी स्वरूप हो – वह हमारे रक्षक, आधार और सच्चे मार्गदर्शक हैं।




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