उत्तराखंड की हिमालयी वादियों में छिपे अनगिनत रहस्यमयी मंदिर आस्था और प्रकृति के अद्भुत संगम का प्रतीक हैं। इनमें से एक है बंसी नारायण मंदिर, जो चमोली जिले की ऊर्गम घाटी में बसा हुआ है। यह 8वीं शताब्दी का प्राचीन वैष्णव मंदिर भगवान विष्णु (कृष्ण रूप में) को समर्पित है और अपनी अनोखी परंपरा के लिए विख्यात है। मंदिर के द्वार वर्ष में केवल एक बार, रक्षा बंधन के दिन खुलते हैं, जब भक्तगण भगवान नारायण को राखी बांधते हैं। यदि आप धार्मिक यात्रा और ट्रेकिंग के शौकीन हैं, तो यह स्थान आपके लिए अविस्मरणीय अनुभव सिद्ध होगा।
बंसी नारायण मंदिर ऊर्गम घाटी में स्थित है, जो चमोली जिले के अंतर्गत आता है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 3600 मीटर (11,800 फुट) की ऊंचाई पर बुग्याल (हिमालयी घास के मैदान) में बसा है। चारों ओर नंदा देवी, त्रिशूल और नंदा घुंटी जैसी हिमालयी चोटियों का मनोरम दृश्य है, जबकि घने ओक और रोडोडेंड्रॉन के जंगलों से यह घिरा हुआ है। मंदिर के आसपास कोई मानव बस्ती नहीं है, जो इसे और भी शांतिपूर्ण बनाता है।
इस मंदिर का महत्व इसकी पौराणिक कथाओं और अनोखी परंपरा में निहित है। यह पंच केदार के अंतिम मंदिर काल्पेश्वर से मात्र 12 किमी दूर है और चार धाम यात्रा के मार्ग पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां भगवान कृष्ण अपनी बांसुरी (बंसी) बजाते हैं, जिसकी ध्वनि सच्चे भक्तों को सुनाई देती है। यह मंदिर साहसिक ट्रेकिंग, कैंपिंग, तीर्थयात्रा और प्रकृति प्रेम के लिए भी प्रसिद्ध है।
मंदिर का इतिहास हिंदू पौराणिक कथाओं से गहराई से जुड़ा है। कथा के अनुसार, जब राक्षस राजा बली ने देवताओं को हराकर पृथ्वी पर अधिपत्य जमा लिया, तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया। तीन पग में उन्होंने ब्रह्मांड नाप लिया और तीसरा पग बली के सिर पर रखा, जिससे बली पाताल लोक चले गए। बली ने भगवान से रक्षा का वरदान मांगा, तो विष्णु उनके द्वारपाल बन गए। माता लक्ष्मी ने देवर्षि नारद से सलाह ली, जिन्होंने श्रावण पूर्णिमा को बली को रक्षा सूत्र बांधने का उपाय बताया। इससे विष्णु पृथ्वी पर लौटे।
मान्यता है कि बंसी नारायण मंदिर वही स्थान है जहां से भगवान नारायण पाताल से प्रकट हुए। पांडवों के वनवास काल से भी इसका संबंध जोड़ा जाता है। मंदिर 8वीं शताब्दी का है और एकल संरचना वाला है। स्थानीय किंवदंती के अनुसार, देवर्षि नारद वर्ष के 364 दिन यहां पूजा करते हैं, जबकि मनुष्यों को केवल रक्षा बंधन पर प्रवेश की अनुमति है।
मंदिर में पूजा की विधि अत्यंत सरल लेकिन भावपूर्ण है। रक्षा बंधन (श्रावण पूर्णिमा) पर द्वार खुलते हैं, जब भक्त सुबह जल्दी पहुंचकर भगवान विष्णु की चतुर्भुज प्रतिमा को स्नान कराते हैं, मक्खन चढ़ाते हैं और राखी बांधते हैं। मंदिर में भगवान नारायण, शिव, गणेश और वन देवी की मूर्तियां हैं। कालकोठ गांव के जाख पुजारी पूजा का संचालन करते हैं।
उत्सव का मुख्य आकर्षण रक्षा बंधन मेला है, जहां महिलाएं भगवान को राखी बांधकर भाई-बहन के बंधन का प्रतीक चरित करती हैं। कालकोठ के प्रत्येक घर से मक्खन दान किया जाता है, जिससे प्रसाद तैयार होता है। यह दिन भक्ति, संस्कृति और हिमालयी लोक नृत्यों से सराबोर होता है। वर्ष भर मंदिर बंद रहता है, लेकिन ट्रेकर्स दर्शन कर सकते हैं।
बंसी नारायण मंदिर ऊर्गम घाटी के हृदय में होने से कई अन्य स्थलों से जुड़ा है। निकटतम काल्पेश्वर महादेव (पंच केदार का अंतिम) मात्र 12 किमी दूर है। ट्रेक मार्ग पर ऊरूबा ऋषि मंदिर, भगवती देवी मंदिर और चेतर्पाल मंदिर जैसे प्राचीन स्थल हैं। घाटी के बुग्याल, नंदा देवी अभयारण्य और हिमालयी चोटियां ट्रेकिंग प्रेमियों को आकर्षित करती हैं। जोशीमठ से बद्रीनाथ धाम की यात्रा भी आसान है। प्रकृति प्रेमी यहां पक्षी विहार और कैंपिंग का लुत्फ उठा सकते हैं।
बंसी नारायण मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि हिमालय की रहस्यमयी संस्कृति और पौराणिक कथाओं का जीवंत प्रमाण भी है। रक्षा बंधन पर यहां का दृश्य भक्ति की लहर पैदा कर देता है। यदि आप उत्तराखंड की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो इस अनोखे मंदिर को अपनी सूची में अवश्य शामिल करें। जय भगवान नारायण!