हाट कालिका मंदिर - उत्तराखंड

महत्वपूर्ण जानकारी

  • सड़क से: देहरादून से पिथौरागढ़ के लिए बस या टैक्सी लें (रुद्रपुर और हल्द्वानी होते हुए लगभग 440 km, 12-14 घंटे)। पिथौरागढ़ से, गंगोलीहाट (60 km, 2-3 घंटे) के लिए शेयर्ड टैक्सी या लोकल बस लें। देहरादून से कुल दूरी लगभग 500 km है।
  • रेल से: सबसे पास का स्टेशन काठगोदाम (हल्द्वानी, 200 km) है। देहरादून या दिल्ली से काठगोदाम के लिए ट्रेन लें, फिर पिथौरागढ़ (150 km, 5-6 घंटे) के लिए बस या टैक्सी लें, इसके बाद ऊपर बताए गए गंगोलीहाट के रास्ते से जाएं।
  • हवाई जहाज से: पंतनगर एयरपोर्ट (सबसे पास, गंगोलीहाट से 220 km) के लिए उड़ान भरें। वहां से, पिथौरागढ़ (120 km, 4-5 घंटे) के लिए टैक्सी या बस लें, फिर गंगोलीहाट जाएं। इसके अलावा, जॉली ग्रांट एयरपोर्ट (देहरादून, 450 km) ऊपर बताए गए तरीके से सड़क से जुड़ता है।
  • रोड रूट की खास बातें: देहरादून – रुद्रपुर – हल्द्वानी – अल्मोड़ा – चौकोरी – पिथौरागढ़ – गंगोलीहाट। यह सफ़र थोड़ा मुश्किल है, घुमावदार पहाड़ी सड़कें हैं, जिनमें चीड़ के जंगल, सीढ़ीदार खेत और बर्फ़ से ढकी चोटियों की झलक मिलती है। ट्रेकिंग की ज़रूरत नहीं है, लेकिन मोशन सिकनेस की दवा साथ रखें और अगर दिल्ली से आ रहे हैं तो रात में रुकने का प्लान बनाएं (कुल 460 km)। आखिरी हिस्से के लिए लोकल जीप मिल जाती हैं।

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बसा गंगोलीहाट, हिमालय की गोद में एक ऐसा स्थान है जहां प्रकृति की शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनोखा संगम होता है। यहां स्थित हाट कालिका मंदिर मां काली का एक प्रमुख शक्तिपीठ है, जो भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक और साहस का स्रोत है। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिकों के लिए तो मां काली 'इष्ट देवी' हैं। घने देवदार के जंगलों से घिरा यह मंदिर, जहां सदियों पुरानी पवित्र ज्योति जल रही है, पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।

हाट कालिका मंदिर का इतिहास: आदि शंकराचार्य से चंद वंश तक

हाट कालिका मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। पुराणों में इसे महाकाली शक्तिपीठ के रूप में वर्णित किया गया है। आदि शंकराचार्य ने अपनी नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर से केदारनाथ यात्रा के दौरान इस स्थान पर मां काली की स्थापना की। किंवदंती है कि यहां पहले कोई मंदिर नहीं था; मां काली एक शाश्वत ज्योति के रूप में विराजमान थीं, जिसके कारण क्षेत्र निर्जन था। शंकराचार्य ने तांत्रिक साधना से देवी को प्रसन्न किया, जिससे पहला मंदिर का निर्माण संभव हुआ।

14वीं शताब्दी में चंद वंश के शासकों ने मंदिर का विस्तार किया। आधुनिक स्वरूप जंगम बाबा द्वारा दिया गया, जिन्होंने वर्षों की तपस्या के बाद देवी के स्वप्न आदेश पर मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिर हैं, जहां प्राचीन मूर्तियां और स्वाभाविक रूप से उत्पन्न विग्रह स्थापित हैं। एक अनोखी विशेषता यह है कि यहां सदियों से एक अविरल पवित्र धुन जल रही है, जो मां काली की शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।

पौराणिक कथा और महत्व: सैनिकों की रक्षक मां

मां काली की कथा रोचक है। किंवदंती के अनुसार, देवी ने पश्चिम बंगाल से अपना स्थानांतरित कर यहाँ विग्रह स्थापित किया। 1918 में, कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिकों की एक टुकड़ी समुद्री तूफान में फंस गई। जब सभी प्रयास विफल हो गए, तो सैनिकों ने मां हाट कालिका का आह्वान किया। चमत्कारिक रूप से जहाज सुरक्षित पहुंचा, बिना किसी हानि के। तब से मां काली कुमाऊं रेजिमेंट की संरक्षक देवी हैं। मंदिर की दीवारों पर 1971 के भारत-पाक युद्ध में रेजिमेंट की वीर गाथाओं के चित्र उकेरे गए हैं।

यह शक्तिपीठ तांत्रिक साधना और ध्यान के लिए आदर्श है। कुमाऊं क्षेत्र के लोगों, विशेषकर सैनिकों के लिए इसका असीम महत्व है। मां काली की कृपा से साहस और शांति प्राप्त होती है। पास ही चामुंडा मंदिर भी स्थित है, जो इस क्षेत्र को और पवित्र बनाता है।

उत्सव और पूजा: भक्ति का संगम

हाट कालिका मंदिर में वर्ष भर पूजा-अर्चना होती रहती है। प्रमुख उत्सवों में दीपावली, दशहरा, नवरात्रि और महाशिवरात्रि शामिल हैं, जब भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। विशेष यज्ञ जैसे सहस्र चंडी यज्ञ, सहस्रघाट पूजा, षट्-चंडी महायज्ञ और अष्ट-बली अथवार पूजा आयोजित होते हैं। इनमें भक्त मां की आराधना में लीन हो जाते हैं।

वास्तुकला: प्रकृति से सजा प्रांगण

देवदार के घने जंगलों के बीच बसा मंदिर परिसर अत्यंत मनमोहक है। मुख्य गर्भगृह जंगम बाबा द्वारा निर्मित है, जहां मां काली की भयंकर किंतु करुणामयी मूर्ति विराजमान है। परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के छोटे मंदिर, प्राचीन मूर्तियां और प्राकृतिक विग्रह हैं। सुबह की आरती और सूर्योदय का दृश्य देखते ही बनता है।

कैसे पहुंचें और यात्रा टिप्स

हाट कालिका मंदिर पिथौरागढ़ से 57 किमी, चौकोड़ी से 35 किमी और पाताल भुवनेश्वर से 13 किमी दूर है। निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर (210 किमी) और रेलवे स्टेशन काठगोदाम (200 किमी) है। हल्द्वानी से बस या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं।

मंदिर का समय सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक है। वस्त्र सादा और सम्मानजनक पहनें, जूते-चप्पल और चमड़े की वस्तुएं बाहर उतारें। गर्भगृह में फोटोग्राफी निषिद्ध है। स्थानीय व्यंजन जैसे भट्ट की चटनी, आलू के गुटके, भांग की चटनी, मंडुआ रोटी और बाल मिठाई का स्वाद चखना न भूलें। ठहरने के लिए गंगोलीहाट में होटल रणवीर इन, मां चामुंडा होटल या पाताल भुवनेश्वर में परवती रिसॉर्ट उपलब्ध हैं।

हाट कालिका मंदिर हमें सिखाता है कि शक्ति और करुणा का संतुलन ही जीवन का सार है। यदि आप आध्यात्मिक शांति और हिमालयी सौंदर्य की तलाश में हैं, तो यह स्थान अवश्य जाएं। मां काली की कृपा आपकी यात्रा को अविस्मरणीय बना देगी!





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