

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बसा गंगोलीहाट, हिमालय की गोद में एक ऐसा स्थान है जहां प्रकृति की शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनोखा संगम होता है। यहां स्थित हाट कालिका मंदिर मां काली का एक प्रमुख शक्तिपीठ है, जो भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक और साहस का स्रोत है। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिकों के लिए तो मां काली 'इष्ट देवी' हैं। घने देवदार के जंगलों से घिरा यह मंदिर, जहां सदियों पुरानी पवित्र ज्योति जल रही है, पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।
हाट कालिका मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। पुराणों में इसे महाकाली शक्तिपीठ के रूप में वर्णित किया गया है। आदि शंकराचार्य ने अपनी नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर से केदारनाथ यात्रा के दौरान इस स्थान पर मां काली की स्थापना की। किंवदंती है कि यहां पहले कोई मंदिर नहीं था; मां काली एक शाश्वत ज्योति के रूप में विराजमान थीं, जिसके कारण क्षेत्र निर्जन था। शंकराचार्य ने तांत्रिक साधना से देवी को प्रसन्न किया, जिससे पहला मंदिर का निर्माण संभव हुआ।
14वीं शताब्दी में चंद वंश के शासकों ने मंदिर का विस्तार किया। आधुनिक स्वरूप जंगम बाबा द्वारा दिया गया, जिन्होंने वर्षों की तपस्या के बाद देवी के स्वप्न आदेश पर मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिर हैं, जहां प्राचीन मूर्तियां और स्वाभाविक रूप से उत्पन्न विग्रह स्थापित हैं। एक अनोखी विशेषता यह है कि यहां सदियों से एक अविरल पवित्र धुन जल रही है, जो मां काली की शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
मां काली की कथा रोचक है। किंवदंती के अनुसार, देवी ने पश्चिम बंगाल से अपना स्थानांतरित कर यहाँ विग्रह स्थापित किया। 1918 में, कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिकों की एक टुकड़ी समुद्री तूफान में फंस गई। जब सभी प्रयास विफल हो गए, तो सैनिकों ने मां हाट कालिका का आह्वान किया। चमत्कारिक रूप से जहाज सुरक्षित पहुंचा, बिना किसी हानि के। तब से मां काली कुमाऊं रेजिमेंट की संरक्षक देवी हैं। मंदिर की दीवारों पर 1971 के भारत-पाक युद्ध में रेजिमेंट की वीर गाथाओं के चित्र उकेरे गए हैं।
यह शक्तिपीठ तांत्रिक साधना और ध्यान के लिए आदर्श है। कुमाऊं क्षेत्र के लोगों, विशेषकर सैनिकों के लिए इसका असीम महत्व है। मां काली की कृपा से साहस और शांति प्राप्त होती है। पास ही चामुंडा मंदिर भी स्थित है, जो इस क्षेत्र को और पवित्र बनाता है।
हाट कालिका मंदिर में वर्ष भर पूजा-अर्चना होती रहती है। प्रमुख उत्सवों में दीपावली, दशहरा, नवरात्रि और महाशिवरात्रि शामिल हैं, जब भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। विशेष यज्ञ जैसे सहस्र चंडी यज्ञ, सहस्रघाट पूजा, षट्-चंडी महायज्ञ और अष्ट-बली अथवार पूजा आयोजित होते हैं। इनमें भक्त मां की आराधना में लीन हो जाते हैं।
देवदार के घने जंगलों के बीच बसा मंदिर परिसर अत्यंत मनमोहक है। मुख्य गर्भगृह जंगम बाबा द्वारा निर्मित है, जहां मां काली की भयंकर किंतु करुणामयी मूर्ति विराजमान है। परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के छोटे मंदिर, प्राचीन मूर्तियां और प्राकृतिक विग्रह हैं। सुबह की आरती और सूर्योदय का दृश्य देखते ही बनता है।
हाट कालिका मंदिर पिथौरागढ़ से 57 किमी, चौकोड़ी से 35 किमी और पाताल भुवनेश्वर से 13 किमी दूर है। निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर (210 किमी) और रेलवे स्टेशन काठगोदाम (200 किमी) है। हल्द्वानी से बस या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं।
मंदिर का समय सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक है। वस्त्र सादा और सम्मानजनक पहनें, जूते-चप्पल और चमड़े की वस्तुएं बाहर उतारें। गर्भगृह में फोटोग्राफी निषिद्ध है। स्थानीय व्यंजन जैसे भट्ट की चटनी, आलू के गुटके, भांग की चटनी, मंडुआ रोटी और बाल मिठाई का स्वाद चखना न भूलें। ठहरने के लिए गंगोलीहाट में होटल रणवीर इन, मां चामुंडा होटल या पाताल भुवनेश्वर में परवती रिसॉर्ट उपलब्ध हैं।
हाट कालिका मंदिर हमें सिखाता है कि शक्ति और करुणा का संतुलन ही जीवन का सार है। यदि आप आध्यात्मिक शांति और हिमालयी सौंदर्य की तलाश में हैं, तो यह स्थान अवश्य जाएं। मां काली की कृपा आपकी यात्रा को अविस्मरणीय बना देगी!