

भद्रा विचार या भद्रा काल वह समय अवधि होती है जिस समय में कोई भी शुभ व मंगलिक कार्य नहीं किये जाते है। समय अवधि को अशुभ माना जाता है। भद्रा का वास्तविक अर्थ ‘कल्याण करने वाला’ होता है परन्तु इसके अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य करने के लिए निषेध माना गया है।
हिन्दू पंचाग में 5 प्रमुख अंग होते हैं जिनका नाम तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण है। इनमें से करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे जाते हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है।
भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और शनि देव की बहन है। भद्रा स्वभाव बहुत ही कड़क होता है। भगवान ब्रह्मा ने भद्रा को कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया ताकि भद्रा के स्वभाव को नियंत्रित किया जा सके। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनीतिक चुनाव कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं।
भद्रा शुरू: गुरुवार, 01 मई 2025 को 00:43 बजे
भद्रा समाप्त: गुरुवार, 01 मई 2025 को 11:23 बजे।
भद्रा शुरू: रविवार, 04 मई 2025 को 07:18 बजे
भद्रा समाप्त: रविवार, 04 मई 2025 को 07:21 बजे।
भद्रा शुरू: बुधवार, 07 मई 2025 रात 11:21 बजे
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भद्रा शुरू: रविवार, 11 मई 2025 रात 08:01 बजे
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भद्रा शुरू: गुरुवार, 15 मई 2025 दोपहर 03:18 बजे
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भद्रा शुरू: सोमवार, 19 मई 2025 सुबह 06:11 बजे
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भद्रा शुरू: गुरुवार, 22 मई 2025 दोपहर 02:21 बजे
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भद्रा शुरू: रविवार, 25 मई 2025 को 03:51 PM बजे
भद्रा समाप्त: सोमवार, 26 मई 2025 को 02:01 AM बजे
भद्रा शुरू: शुक्रवार, 30 मई 2025 को 10:14 AM बजे
भद्रा समाप्त: शुक्रवार, 30 मई 2025 को 09:22 PM बजे