भीष्म अष्टमी 2025

महत्वपूर्ण जानकारी

  • भीष्म अष्टमी 2025
  • बुधवार, 05 फरवरी 2025
  • अष्टमी तिथि प्रारम्भ: 05 फरवरी 2025 प्रातः 02:30 बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त: 06 फरवरी 2025 को प्रातः 00:35 बजे

भीष्म अष्टमी का हिंदू धर्म विशेष महत्व रखता है इस दिन को हिन्दू धर्म में एक त्योहार तरह मनाया जाता है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी कहा जाता है। यह दिन जनवरी व फरवरी महीनें के दौरान आता है। यह वह दिन जो भारतीय महाकाव्य महाभारत के भीष्म को समर्पित है। भीष्म को ‘गंगा पुत्र भीष्म’ या ‘भीष्म पितामह’ के नाम से जाने जाते थे परन्तु भीष्म को मूल नाम ‘देवव्रत’ था। भीष्म, महाराजा शान्तनु के पुत्र थे और उनकी मां गंगा थी, इसलिए भीष्म को ‘गंगा पुत्र’ के नाम से जाना जाता है।

महाराजा शान्तनु ने अपने पुत्र भीष्म को यह वरदान दिया था, कि वह अपने मृत्यु का दिन स्वयं चुन सकते है। भीष्म ने यह प्रतिज्ञा ली थी, कि वह कभी शादी नहीं करेगें और अपने पिता का सिंहासन के प्रति वफादार रहेंगे।

भीष्म अष्टमी क्या है?

हिन्दू मास के माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन भीष्म ने अपने शरीर का त्याग किया था। यह वह दिन था, जिसे देवों का दिन कहा जाता है। भीष्म पितामह ने उत्तरायण के शुभ दिन पर अपना शरीर छोड़ दिया, अर्थात जिस दिन भगवान सूर्य दक्षिणायन की छह महीने की अवधि पूरी करने के बाद उत्तर की ओर बढ़ने लगे। ऐसा माना जाता है कि उत्तरायण के दौरान यदि कोई व्यक्ति मर जाता है तो वह स्वर्ग जाता है।

माघ शुक्ल अष्टमी के दौरान भीष्म पितामह की मृत्यु की वर्षगांठ मनाई जाती है। इसलिए दिन को ‘भीष्म अष्टमी’ कहा जाता है, और निर्विवाद रूप से भीष्म पितामह की पुण्यतिथि के रूप में जाना जाता है। उस दिन से जुड़ी किंवदंती के अनुसार, भीष्म ने अपना शरीर छोड़ने से पहले 58 दिनों तक प्रतीक्षा की थी।

भीष्म अष्टमी पूजा

  • भीष्म पितामह के सम्मान में लोगों द्वारा एकोदिष्ट श्राद्ध किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह वहीं व्यक्ति कर सकता है जिसके पिता जीवित न हो। परन्तु कुछ लोग ऐसा नहीं मानते हैं और भीष्म अष्टमी की ‘पूजा अनुष्ठान’ कर सकते है।
  • भीष्म पितामह की आत्मा को शांति देने के लिए लोग पास के नदी तट पर जाते हैं और ’तर्पण’ की रस्म करते हैं। इसी रीति से वे अपने पूर्वजों का सम्मान भी करते हैं।
  • लोग गंगा नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं और जीवन और मृत्यु के चक्र से बाहर आने और अपनी आत्मा को शुद्ध करने के लिए उबले हुए चावल और तिल चढ़ाते हैं।
  • भक्त दिन के दौरान उपवास रखते हैं और ’अर्घ्यम’ करते हैं और देवता का आशीर्वाद पाने के लिए ’भीष्म अष्टमी मंत्र’ का जाप करते हैं।
  • भीष्म अष्टमी के दिन कुरुक्षेत्र में स्थित भीष्म कुंड में पवित्र डुबकी लगाते है और पूजा करते है।

भीष्म अष्टमी मंत्र

वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृत्यप्रवराय च।
गंगापुत्राय भीष्माय सर्वदा ब्रह्मचारिणे।।
भीष्म: शान्तनवो वीर: सत्यवादी जितेन्द्रिय:।
आभिरभिद्रवाप्नोतु पुत्रपौत्रोचितां क्रियाम्।।



अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न


भीष्म अष्टमी क्यों मनाते हैं?

यह वह दिन था, जिसे देवों का दिन कहा जाता है। भीष्म पितामह ने उत्तरायण के शुभ दिन पर अपना शरीर छोड़ दिया, अर्थात जिस दिन भगवान सूर्य दक्षिणायन की छह महीने की अवधि पूरी करने के बाद उत्तर की ओर बढ़ने लगे।


भीष्म पितामह का मूल नाम क्या था ?

भीष्म का मूल नाम 'देवव्रत' था और उन्हें गंगापुत्र भीष्म भी कहा जाता था।






2024 के आगामी त्यौहार और व्रत











दिव्य समाचार











Humble request: Write your valuable suggestions in the comment box below to make the website better and share this informative treasure with your friends. If there is any error / correction, you can also contact me through e-mail by clicking here. Thank you.

EN हिं