कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को छोटी दीपावली के रूप में मनाया जाता है। छोटी दीपावली वाले दिन को कई ओर त्योहर भी होते है जैसे धन तेरस और नरक चतुर्दशी। इस दिन लोग अपने घर में नये बर्तन व चाँदी खरीदनें का प्रचलन है। छोटी दीपावली का दिन भी हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है।
इस त्योहार का मुख्य घर में उजाला और घर के हर कोने को प्रकाशित करना है। कहा जाता है दीपावली से एक दिन पहले अयोध्या में भगवान राम, देवी सीता और लक्ष्मण के आने की खुशी में, एक दिन पहले से ही दीपक जलाकर छोटी दीपावली मनाई थी और दीपावली के दिन भगवान श्री राम चन्द्र जी चैदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या आये थे तब अयोध्या वासियों ने अपनी खुशी के दिए जलाकर उत्सव मनाया व भगवान श्री रामचन्द्र माता जानकी व लक्ष्मण का स्वागत किया और इस दिन को बड़ी दीपावली भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का वध किया था और और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण की पूजा भी की जाती है।
सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नानादि से निपट कर यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित करने का विधान है। शाम को यमराज के लिए दीपदान करना चाहिए।
सूर्यादय से पहले आटा, तेल, हल्दी का उबटन मलकर स्नान करें। फिर एक थाली में एक चैमुखी दीपक तथा 16 छोटे दीपक लेकर उनमें तेल बाती डालकर जलावें। फिर रोली, खील, गुड़, धूप, अबीर, गुलाल, फूल आदि से पूजा करें। पहले घर के पुरुष फिर स्त्रियाँ पूजन करें। पूजन के पश्चात् सब दीपकों को घर के अन्दर प्रत्येक स्थान पर रख दें। चारमुख वाले दीपक को मुख्य द्वारर पर रख दें। लक्ष्मी के आगे चैक पूरकर धूप दीप कर दें।