रविवार व्रत, पूजा और कथा

महत्वपूर्ण जानकारी

  • रविवार व्रत
  • रविवार, 06 अक्टूबर 2024

हिन्दू धर्म में सप्ताह के सात दिन किसी ने किसी देवता को समर्पित होते है। इस प्रकार रविवार का दिन भी हिन्दू धर्म में महत्व रखता है। रविवार का दिन भगवान सूयदेव को समर्पित होता है। यह व्रत पुरूष और महिलाओं द्वारा किया जाता हैं। रविवार का व्रत बहुत ही फल दायक माना जाता है। इस दिन सूर्यदेव की पूजा का विधान है। रविवार के दिन सूर्यदेव की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है। रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मान-सम्मान, धन-यश तथा उत्तम स्वास्थ्य मिलता है। कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है।

रविवार व्रत में पूजा विधि

सर्व मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु रविवार का व्रत श्रेष्ठ है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है। प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शानचित्त होकर सूर्यदेव का स्मरण करें। भोजन एक समय से अधिक नहीं करना चाहिए। भोजन तथा फलाहार सूर्य के प्रकाश रहते की कर लेना चाहिए उचित है यदि निराहार रहने पर सूर्य छिप जाये तो दूसरे दिन सूर्य उदय हो जाने पर अर्ध्य देने के बाद ही भोजन करें।

इसके बाद विधि-विधान से गंध-पुष्पादि से भगवान सूर्य का पूजन करें। पूजन के बाद व्रतकथा सुनें। व्रतकथा सुनने के बाद आरती करें। तत्पश्चात सूर्य भगवान का स्मरण करते हुए सूर्य को जल देकर सात्विक भोजन व फलाहार करें।

व्रत के दिन नमकीन तेलयुक्त भोजन कदापि ग्रहण न करें। इस व्रत के करने से मान-सम्मान बढ़ता है तथा शत्रुओं का क्षय होता है। आँख की पीड़ा के अतिरिक्त अन्य सब पीड़ायें दूर होती है।

रविवार व्रत में नहीं करना चाहिए

  • तेल युक्त भोजन नहीं करना चाहिए।
  • सूर्य अस्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए।
  • नमकीन युक्त भोजन नहीं करना चाहिए।

रविवार व्रत कथा

प्राचीन काल में किसी नगर में एक बुढ़िया रहती थी। वह प्रत्येक रविवार को सुबह उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती थी। उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद भोजन तैयार कर भगवान को भोग लगाकर ही स्वयं भोजन करती थी। भगवान सूर्यदेव की कृपा से उसे किसी प्रकार की चिन्ता व कष्ट नहीं था। धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था।उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी। बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी। अतः रविवार के दिन घर लीपने केलिए वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी। पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। आगे पढ़ें...









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