

हम सब अपने घरों में, मंदिरों में, देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी इन दिव्य दम्पतियों के रिश्तों पर गहराई से विचार किया है? यह केवल पूजा का विधान नहीं, बल्कि प्रेम, त्याग, और शक्ति के संतुलन का एक अद्भुत उदाहरण है।
हमारे धर्मग्रंथों में हर देव शक्ति के साथ एक ऐसी देवी हैं, जो उन्हें पूर्णता प्रदान करती हैं, उनका संबल बनती हैं, और सृष्टि के संचालन में उनका साथ देती हैं। सृष्टि में संतुलन बनाए रखने के लिए, हर देव-शक्ति के साथ एक ऐसी देवी शक्ति का वास है जो उस शक्ति को पूर्णता देती है:
जब हम भगवान शिव का नाम लेते हैं, तो मन में पार्वती जी का ध्यान अनायास ही आ जाता है उनका रिश्ता प्रेम, तपस्या और अटूट विश्वास का प्रतीक है। पार्वती जी शिव की शक्ति हैं, उनके अर्धांग हैं—नारी शक्ति के बिना पुरुष शक्ति अधूरी है।
भगवान विष्णु और पत्नी लक्ष्मी: यह रिश्ता समृद्धि और पालन-पोषण का है। विष्णु जहाँ सृष्टि के पालक हैं, वहीं लक्ष्मी उन्हें संसार चलाने के लिए धन और ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।
भगवान गणेश और पत्नी रिद्धि-सिद्धि: रिद्धि का अर्थ है समृद्धि और सिद्धि का अर्थ है सफलता। यानी, बुद्धि के देवता (गणेश) के साथ ये दोनों शक्तियाँ हमेशा मौजूद रहती हैं—जीवन में बुद्धि तभी काम आती है, जब वह समृद्धि और सफलता लाए।
भगवान ब्रह्मा और पत्नी सरस्वती: ब्रह्मा जहाँ सृष्टि के निर्माता हैं, वहीं सरस्वती उन्हें ज्ञान और वाणी की शक्ति देती हैं। बिना ज्ञान के सृष्टि की रचना संभव नहीं।
भगवान राम और पत्नी सीता: यह संबंध मर्यादा, समर्पण और पवित्रता की सर्वोच्च मिसाल है। हर मुश्किल में सीता ने राम का साथ दिया, जो हमें सिखाता है कि रिश्ते में कितनी भी बड़ी बाधा आए, प्रेम और विश्वास को नहीं छोड़ना चाहिए।
भगवान कृष्ण और पत्नी रुक्मिणी: कृष्ण का प्रेम उनकी पत्नी रुक्मिणी में साकार हुआ। यह संबंध जीवन की मधुरता और समर्पण को दर्शाता है।
भगवान इंद्र और पत्नी शचि (या इंद्राणी): इंद्र स्वर्ग के राजा और वर्षा के देवता हैं। उनकी पत्नी शचि (इंद्राणी) देवियों में सबसे शक्तिशाली और सम्माननीय मानी जाती हैं। इनका संबंध शक्ति, ऐश्वर्य और नेतृत्व के साथ-साथ इंद्र के विभिन्न उतार-चढ़ावों में शचि के स्थिर सहयोग को दर्शाता है।
भगवान सूर्य और पत्नी संज्ञा: सूर्य देव सभी ऊर्जा के स्रोत हैं। उनकी पत्नी संज्ञा (या संजा) इनका साथ देती हैं। इनका संबंध हमें सिखाता है कि जीवन में तेज और ऊर्जा के साथ संतुलन बनाए रखना कितना ज़रूरी है। सूर्य देव की दो पत्नियाँ हैं: संज्ञा (या सरन्यू) और छाया। संज्ञा, जो विश्वकर्मा की पुत्री थीं, ने अपने तेज को सहन न कर पाने के कारण अपनी छाया को सूर्य की पत्नी के रूप में छोड़ दिया और तपस्या करने चली गईं। संज्ञा की छाया से उत्पन्न हुई छाया ने उनकी जगह ली, जिससे सूर्य को लगा कि वह अपनी पहली पत्नी के साथ ही हैं।
भगवान चंद्र और पत्नी रोहिणी: चंद्रमा शीतलता और मन के देवता हैं। उनकी पत्नी रोहिणी हैं। यह संबंध शांति, सौंदर्य और भावनात्मक स्थिरता का प्रतीक है।
भगवान वरुण और पत्नी वारुणी: वरुण देव जल और सागरों के अधिपति हैं। उनकी पत्नी वारुणी हैं, जो मदिरा की देवी भी मानी जाती हैं। इनका संबंध प्रकृति की विशालता और जीवन में हर तरह के रस या भोग की उपस्थिति को दर्शाता है।
भगवान अग्नि और पत्नी स्वाहा: अग्नि देव को यज्ञ और शुद्धिकरण का देवता माना जाता है। उनकी पत्नी स्वाहा हैं। यज्ञ में कोई भी आहुति तभी स्वीकार होती है, जब 'स्वाहा' कहकर अग्नि को अर्पित की जाती है। यह संबंध कर्म और उसके स्वीकार होने की प्रक्रिया का प्रतीक है।
भगवान वायु (पवनदेव) और पत्नी मारुदेवी: पवनदेव वायु के स्वामी हैं। उनकी पत्नी मरुदेवी हैं। यह रिश्ता जीवन के लिए सबसे आवश्यक तत्व (वायु) और उसकी शुद्धता के महत्व को बताता है।
भगवान कुबेर और पत्नी कौवेरी: कुबेर धन के देवता और यक्षों के राजा हैं। उनकी पत्नी कौवेरी हैं। यह संबंध केवल धन के संचय का नहीं, बल्कि उसके उचित प्रबंधन और स्थिरता को दर्शाता है।
भगवान कामदेव और पत्नी रति: कामदेव प्रेम और आकर्षण के देवता हैं। उनकी पत्नी रति प्रेम की देवी हैं। यह संबंध जीवन में प्रेम, सौंदर्य और भावनात्मक जुड़ाव के महत्व को बताता है।
हमारे ये सभी देवी-देवता एक पूर्ण परिवार में ही पूजे जाते हैं, जो हमें सिखाता है कि पारिवारिक सामंजस्य और जीवनसाथी का साथ ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है।