

हिंदू धर्म में कई छोटी-छोटी रीतियां हैं जो जीवन को शुद्ध और आध्यात्मिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनमें से एक है आचमन। आचमन न केवल एक साधारण जल-सिप करने की क्रिया है, बल्कि यह आत्मा को शुद्ध करने, मन को स्थिर करने और देवताओं से जुड़ने का माध्यम है। लेकिन सवाल यह है कि आचमन क्यों करें? इसका उत्तर वेदों, पुराणों और धर्मशास्त्रों में छिपा है। इस लेख में हम आचमन के महत्व, विधि और लाभों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
आचमन संस्कृत शब्द 'आ' (आसपास) और 'चमन' (स्नान या शुद्धिकरण) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है 'शुद्ध जल से स्नान या शुद्धिकरण'। सरल शब्दों में, आचमन वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति दाहिने हथेली में थोड़ा जल लेकर उसे तर्जनी, अंगूठी और कनिष्ठिका उंगली के बीच से सिप करता है, साथ ही मंत्रों का जाप करता है। यह प्रथा मुख्य रूप से पूजा, यज्ञ, तर्पण या किसी धार्मिक अनुष्ठान के आरंभ में की जाती है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक धार्मिक कार्य के आरंभ में और विशेष पूजाओं से संयोजित साध्योपासना में तीन बार आचमन करने का शास्त्रीय विधान है। मनुस्मृति और अन्य ग्रंथों में इसे आत्म-शुद्धि का प्रतीक बताया गया है।
हिंदू शास्त्रों में आचमन को अत्यंत पवित्र माना गया है। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि तीन बार जल का आचमन करने से तीनों वेद—ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद—होकर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
अथर्ववेद में भी आचमन को रोग निवारण और आयु वृद्धि का साधन बताया गया है। पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु ने स्वयं आचमन की विधि सिखाई थी, जो कल्कि अवतार तक चली आ रही है। महाभारत में भी युधिष्ठिर को आचमन के माध्यम से शुद्धि प्राप्त करने का उल्लेख मिलता है।
इस प्रकार, आचमन केवल जल पीना नहीं, बल्कि वेदों की त्रयी को आत्मसात करने की प्रक्रिया है। यह व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त कर सकारात्मकता से भर देता है।
आचमन करना अत्यंत सरल है, लेकिन इसे विधि-पूर्वक करना आवश्यक है। निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
ध्यान रखें: आचमन हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके करें। महिलाएं और बच्चे भी इसे कर सकते हैं, लेकिन मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को इससे परहेज करना चाहिए।
आचमन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाभदायक है:
आधुनिक विज्ञान भी इसे मान्यता देता है—जल में घुलित मिनरल्स शरीर को हाइड्रेट रखते हैं, जबकि मंत्रों का उच्चारण मस्तिष्क की तरंगों को संतुलित करता है।
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में आचमन जैसी सरल प्रथा हमें अपने मूल से जोड़ती है। यह न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा है, बल्कि दैनिक जीवन में भी अपनाई जा सकती है। तीन बार का आचमन करके हम वेदों की शक्ति को आमंत्रित करते हैं, जो हमारी मनोकामनाओं को पूरा करने में सहायक बनती है।
तो आज से ही शुरू करें—प्रत्येक पूजा या भोजन से पहले आचमन करें। याद रखें, छोटी-छोटी रीतियां ही बड़ा परिवर्तन लाती हैं। यदि आप आचमन की विधि सीखना चाहें, तो किसी विद्वान पंडित से मार्गदर्शन लें।
जय श्री राम! (यह लेख हिंदू शास्त्रों और परंपराओं पर आधारित है। किसी भी धार्मिक प्रथा को अपनाने से पहले व्यक्तिगत विश्वास और विशेषज्ञ सलाह लें।)