
आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की नवमी मातृ नवमी कहलाती है। जिस प्रकार पुत्र अपने पिता, पितामह आदि पूर्वजों के निमित्त पितृपक्ष में तर्पण करते हैं, उसी प्रकार उन गृहों की पुत्र वधुएँ भी अपनी दिवंगता सास, माता आदि के निमित्त पितृपक्ष की प्रतिप्रदा से लेकर नवमी तक तर्पण कार्य करती हैं। महिलाएँ, नवमी के दिन दिवंगता माता तथा सास की आत्म शान्ति के लिए ब्राह्मणी को दान देकर सन्तुष्ट करती हैं।
जिन विवाहित महिलाओं की मृत्यु नवमी तिथि को हुई होती है या फिर जिन महिलाओं की तिथि ज्ञात नहीं है, उन सभी का श्राद्ध इस दिन पूरे विधि विधान के साथ किया जाता है। मातृ नवमी को ही माता के श्राद्ध का शास्त्रीय विधान है। इस तिथि का पुत्रवती स्त्रियों को भोजन कराना पुण्यदायी है।
ऐसा माना जाता है कि मातृ नवमी के दिन सुहागन मृत महिलाओं का श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करने से ,भोजन कराने से, दान पुण्य करने से और सुहाग की सामग्री अर्पित करने से पितरों को प्रसन्नता मिलती है और सुहाग अटल होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।