भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘वामन द्वादशी’ कहते हैं। यह वह दिन जब भगवान विष्णु ने वामन देव के रूप में अवतार लिया था। इसलिए इस दिन को वामन जयन्ती भी कहा जाता है। वामन देव, विष्णु के पाँचवे तथा त्रेता युग के पहले अवतार थे। भगवान विष्णु का मनुष्य रूप में पहला अवतार वामन देव था। इससे पहले भगवान विष्णु ने चार अवतार पशु रूप में लिए थे जो की क्रमशः मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार और नरसिंघ अवतार थे। भगवान विष्णु ने वामन अवतार में एक बौने ब्राह्मण का रूप लिया था। दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है।
वामन देव ने भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी को अभिजित मुहूर्त में जब श्रवण नक्षत्र प्रचलित था, माता अदिति व कश्यप ऋषि के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। वह आदित्यों में बारहवें थे। ऐसा माना जाता है कि वामन देव इंद्र के छोटे भाई थे।
इस दिन स्वर्ण या यज्ञोपवित से वामन भगवान की प्रतिमा स्थापित कर सुवर्ण पात्र में अध्र्य दान करें, फल, फूल चढ़ावें तथा उपवास करें।
पूजन मंत्र -
देरेश्वराय देवश्य, देव संभूति कारिणे।
प्रभावे सर्व देवानां वामनाय नमो नमः।।
अघ्र्य मंत्र -
नमस्ये पदमनाभाय नमस्ते जलः शायिने।
तुभ्यमच्र्य प्रयच्छामि वाल यामन अपिणे।।
नमः शांग धनुर्याण पाठये वामनाय च।
यज्ञभुव फलदा त्रेच वामनाय नमो नमः।।
भगवान वामन की स्वर्ण मूर्ति के समक्ष 52 पेड़े तथा 52 दक्षिणा रखकर पूजन करते है। भगवान वामन को भोग लगाकर सकोरों में दही, चावल, चीनी, शरबत तथा दक्षिणा ब्राह्मण को दान करके व्रत का पारण करते हैं। इसी दिन उजमन (व्रत समाप्ति उत्सव) भी करें। उजमन में ब्राह्मणों को 1 माला, 2 गउमुखी कमण्डल, लाठी, आसन, गीता, फल, छाता, खडाऊँ तथा दक्षिणा देते हैं। इस व्रत को करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
भागवत कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने इन्द्र का देवलोक में पुनः अधिकार स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया। देवलोक असुर राजा बली ने हड़प लिया था। बली विरोचन के पुत्र तथा प्रह्लाद के पौत्र थे और एक दयालु असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी तपस्या तथा ताकत के माध्यम से बली ने त्रिलोक पर आधिपत्य हासिल कर लिया था। वामन, एक बौने ब्राह्मण के वेष में बली के पास गये और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि देने का आग्रह किया। उनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था। गुरु शुक्राचार्य के चेताने के बावजूद बली ने वामन को वचन दे डाला।
वामन देव ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया, कि पहले ही कदम में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप लिया। दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया। इसके पश्चात् ब्रह्मा ने अपने कमण्डल के जल से वामन के पाँव धोये। तीसरे कदम के लिए कोई भूमि बची ही नहीं। वचन के पक्के बली ने तब वामन को तीसरा कदम रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। वामन बली की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुये। चूँकि बली के दादा प्रह्लाद विष्णु के परम् भक्त थे, वामन देव (विष्णु) ने बाली को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बाली के सिर में रखा जिसके फलस्वरूप बली पाताल लोक में पहुँच गये।
एक और कथा के अनुसार वामन ने बली के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया। विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुये और राजा को महाबली की उपाधि प्रदान की क्योंकि बली ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को महात्मा साबित कर दिया था। विष्णु ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहाँ उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।