कुर्मा जयंती हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण दिन होता है। यह वह दिन है जब भगवान विष्णु ने कछुए के रूप में अवतार लिया था। कुर्मा एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ हिन्दी भाषा में कछुआ होता है। भगवान विष्णु का कुर्म अवतार धरती पर दूसरा अवतार माना जाता है। कुर्मा जयंती के दिन भगवान विष्णु के भक्त पूर उत्साह और समर्पण के साथ उनकी धार्मिक पूजा करते हैं। कूर्म जयंती के दिन पूरे देश में भगवान विष्णु के मंदिरों में विशेष पूजा और समारोह आयोजित किए जाते हैं।
कुर्मा जयंती का दिन हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वैशाख के महीने में पूर्णिमा के दिन पड़ता है। अग्रेजी कैलेंडर के अनसुर यह तिथि मई और जून के बीच आती है।
पौराणिक कथा के अनुसार यह माना जाता है, कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदर पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकी नामक नाग की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नोंकी प्राप्ति की।
कथा के अनुसार देवराज इन्द्र के शौर्य को देख कर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें पारिजात पुष्प की माला भेंट की परंतु इंद्र नें इसे ग्रहण न करते हुए ऐरावत को पहना दिया और ऐरावत नें उसे भूमि पर फेंक दिया, दुर्वासा ने इससे क्रोधित होकर देवताओं को श्राप दे दिया कि धन की देवी लक्ष्मी गायब हो जाये। जिसके कारण देवता और राक्षस महोदव के पास गये। महोदव ने दोनों को मिलकर क्षीर सागर का मंथन करने को कहा। समुद्र मंथन के लिए भगवान विष्णु ने कर्म अवतार लिया और वासुकी और मंदर पर्वत की सहायता से समुद्र मंथन किया गया था।
यह रूप श्री हरि विष्णु के दूसरे अवतार के रूप में जाना जाता है और हिंदू भक्त इस दिन पूरे उत्साह और समर्पण के साथ उनकी धार्मिक पूजा करते हैं। कूर्म जयंती के दिन पूरे देश में भगवान विष्णु के मंदिरों में विशेष पूजा और समारोह आयोजित किए जाते हैं। आंध्र प्रदेश में ’श्री कुरमन श्री कूर्मनाथ स्वामी मंदिर’ में उत्सव बहुत भव्य है और उत्सव दूर-दूर से भक्तों को आकर्षित करते हैं।