

जब भी अक्टूबर का महीना आता है, हवा में एक अलग ही सुगंध घुल जाती है। पत्तों की सरसराहट में राम का बाण गूंजता महसूस होता है, और रातें रावण के पुतले की लपटों से रोशन हो उठती हैं। बचपन की वो शामें, जब मां हाथ में दीया थामे दरवाजे पर खड़ी होतीं, और हम बच्चे उत्साह से भरे रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर निकल पड़ते। विजया दशमी, या दशहरा – ये नाम ही दिल को छू जाता है। ये त्योहार सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि जीवन की उस सच्चाई का आईना है, जहां अच्छाई हमेशा बुराई पर चमकती है। आज, जब दुनिया इतनी उलझी हुई लगती है, ये पर्व मुझे फिर से याद दिलाता है कि आशा कभी मरती नहीं।
रामायण की वो महाकाव्य कथा, जो हर घर में सुनाई जाती है – भगवान राम का वनवास, सीता का हरण, और फिर लंका पर विजय। दशहरा का दिन तो उसी युद्ध का चरम है, जब राम का बाण रावण के सीने को भेदता है। लेकिन ये सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि हम सबके अंदर की लड़ाई का प्रतीक है। रावण बुराई का चेहरा है – लोभ, क्रोध, अहंकार का। और राम? वो धैर्य, सत्य और प्रेम का अवतार। मुझे याद है, गांव में रावण दहन के दौरान जब वो विशाल पुतला जलता था, तो आग की लपटें आसमान छूतीं, और सबकी आंखों में आंसू चमकते। वो आंसू खुशी के थे, लेकिन कहीं न कहीं दुख के भी – क्योंकि बुराई तो हर युग में लौट आती है, पर विजय हमारी है, बस हिम्मत चाहिए।
इस साल, जब मैंने अपनी पुरानी डायरी खोली, तो एक पन्ना मिला जहां लिखा था: "दशहरा का मतलब सिर्फ पटाखे फोड़ना नहीं, बल्कि अपने अंदर के रावण को जलाना है।" कितना सच्चा लगता है ये आज। कोरोना के बाद की दुनिया में, जहां डर और अनिश्चितता ने सबको घेर लिया था, दशहरा ने फिर से उम्मीद जगाई। घर-घर में वर्चुअल रामलीला, और फिर खुले मैदानों में लौट आया वो शोर-शराबा। ये पर्व हमें सिखाता है कि संघर्ष जितना कठिन हो, उतनी ही मीठी होती है जीत।
दशहरा की तैयारियां तो नवरात्रि से ही शुरू हो जाती हैं। नौ दिनों तक मां दुर्गा की आराधना, गरबा की थिरकन, और फिर दसवें दिन का उमंग। उत्तर भारत में रामलीला का नाटक, जहां बच्चे राम बनते हैं, तो दक्षिण में अय्यप्पा भक्तों का जत्था। बंगाल में तो दुर्गा की विदाई का भावुक क्षण – सिंदूर खेला, जहां मां को अलविदा कहते हुए आंसू बहते हैं। और पंजाब में रावण के पुतले जलाने का वो जोश, जो दूर-दूर तक गूंजता है।
मुझे सबसे ज्यादा पसंद है वो छोटी-छोटी रस्में। जैसे, अपराह्न में बाजार जाकर नई किताबें खरीदना – क्योंकि दशहरा विद्या की देवी सरस्वती का भी पर्व है। या फिर शाम को परिवार के साथ मिलकर मिठाई बांटना। वो पल, जब दादाजी रामकथा सुनाते, और हमारी हंसी-मजाक से घर गूंज उठता। आज, जब बच्चे मोबाइल में खोए रहते हैं, दशहरा हमें बुलाता है – बाहर आओ, जियो, और अच्छाई की जीत मनाओ।
दशहरा सिर्फ इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि भविष्य का संदेश है। आज की दुनिया में, जहां सोशल मीडिया पर झूठ की बाढ़ आ गई है, और लालच ने रिश्तों को खोखला कर दिया, हमें राम बनना होगा। धैर्य रखो, सत्य पर अडिग रहो। मुझे लगता है, अगर हर कोई अपने अंदर झांक ले – वो छोटे-छोटे क्रोध, ईर्ष्या – और उन्हें जलाने का संकल्प ले ले, तो दुनिया कितनी सुंदर हो जाएगी।
इस विजया दशमी पर, मैं प्रार्थना करता हूं कि हर घर में सुख-शांति हो, और बुराई का हर रूप ध्वस्त हो। जय श्री राम! जय मां दुर्गा! आइए, इस पर्व को न सिर्फ मनाएं, बल्कि जिएं। क्योंकि जीत हमारी है – बस विश्वास रखो।