जिन भी माता पिता की संतान केवल बेटी है वह अवश्य पढ़े पूज्य जगद्गुरु जी ने क्या कहा?

गुरुदेव जिनको सिर्फ बेटी होती है, बेटा नहीं होता तो क्या उनको मृत्यु के बाद नर्क मिलता है क्या बेटा होना जरूरी ही है?

पद्मविभूषण पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी के श्रीमुख से जो वचन निकले, वे यही बताते हैं कि बेटा और बेटी में कोई भेद नहीं है। दोनों ही ईश्वर की अनुपम देन हैं। शास्त्र तो यह कहते हैं, एक बेटी 100 बेटों के बराबर होती है। यदि उसे अच्छे पात्र को दे दिया जाए। पढ़ा लिखाकर अच्छे व्यक्ति से उसका विवाह किया जाए, संस्कारणी बनाया जाए और हमने तो यह देखा है कि जितना नाम बेटियां करती है ना उतना बेटे नहीं करते।

शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है –
“सत्पुत्र समा कन्या यदि पात्र प्रदीते”
अर्थात् – यदि बेटी को अच्छे संस्कार दिए जाएं, उसका उचित विवाह हो, उसे शिक्षित और संस्कारवान बनाया जाए, तो वह सौ पुत्रों के समान मानी जाती है।

“राम भजत बिटिया भली, प्रभु पद विमुख न पूत।
शबरी तर गई राम भजी, धुंधकार भा सपूत॥”

अर्थात – यदि बेटी राम का भजन करे तो वह श्रेष्ठ है। और यदि बेटा प्रभु से विमुख है, तो वह किसी काम का नहीं।

बेटियां भी पवित्र करती हैं कुल

हमने इतिहास और समाज में बार-बार यह देखा है कि बेटियों ने अपने माता-पिता का नाम रोशन किया है, जितना बेटों ने भी नहीं किया।
क्या जनक जी का नाम उनके पुत्रों से चला?
नहीं, जनक जी का नाम तो माता सीता (जानकी) से अमर हुआ।

बेटा हो या बेटी – दोनों यदि भगवान का भजन करें, तो अपने माता-पिता को नरक से तारकर वैकुंठ तक पहुंचा सकते हैं।

पिंडदान और दायित्व

शास्त्र कहते हैं –

  • पहले दहित्र (बेटी का बेटा) के द्वारा पिंडदान किया जाता है।
  • फिर पौत्र (बेटे का बेटा) के द्वारा पिंडदान किया जाता है।

इससे स्पष्ट है कि बेटी के वंश से भी पितरों का तर्पण और उद्धार होता है।

पुत्र और पुत्री का अर्थ

संस्कृत में कहा गया है –

  • “पुत्र” = पुतः + नरक → वह जो माता-पिता को नरक से बचाए।
  • “पुत्री” = वही भावनात्मक शक्ति, जो दोनों कुलों को पवित्र करती है।

बेटा केवल एक कुल को पवित्र करता है, पर बेटी दोनों कुलों (पिता और ससुराल) को पवित्र करती है।

निष्कर्ष

गुरुदेव का उत्तर यही है कि –
बेटा होना जरूरी नहीं है।
बेटी और बेटा दोनों समान हैं।
जो भी संतान (पुत्र या पुत्री) भगवान का भजन करती है, सद्मार्ग पर चलती है, वही अपने माता-पिता का उद्धार करती है।

इसलिए किसी को चिंता करने की आवश्यकता नहीं कि यदि केवल बेटियां हैं तो नरक होगा। नहीं।
बल्कि बेटियां तो माता-पिता का गौरव और मोक्ष का साधन बन सकती हैं।









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