भाई दूज का त्योहार हिन्दूओं को प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्योहार रक्षा बंधन के त्योहार के समान है। भाई दूज के त्योहार कई नामों से जाना जाता है जैसे भाबीज, भाई टीका, भाई फोंटा आदि। यह उत्सव विक्रम संवत हिंदू कैलेंडर या कार्तिक के शालिवाहन शाका कैलेंडर माह के शुक्ल पक्ष के दूसरे चंद्र दिवस (उज्ज्वल पखवाड़े) में मनाया जाता है। यह दिवाली के त्योहार के दूसरे दिन आता है।
इस दिन के उत्सव रक्षा बंधन के त्योहार के समान ही मनाया जाता हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों को उपहार देती हैं और छोटी बहन भी अपने बड़े भाइयों को उपहार देती हैं। भाई भी अपनी बहनों को उपहार देते हैं। देश के दक्षिणी भाग में, दिन को यम द्वितीया के रूप में मनाया जाता है।
भारत के उत्तर भाग में, एक अनुष्ठान भी किया जाता है, एक सूखा नारियल (जिसे क्षेत्रीय भाषा में गोला कहा जाता है) को क्लेवा से बांधा जाता है, बहनें अपने भाई की आरती करती हैं और भाई के माथे पर लाल टीका लगाती हैं। भाई दूज के अवसर पर यह टीका समारोह भाई की लंबी और खुशहाल जिंदगी के लिए बहन प्रार्थना करती है, सूखा नारियल अपने भाई को देती है। बदले में, बड़े भाई अपनी बहनों को आशीर्वाद देते हैं और उन्हें उपहार या नकद रुपये देते है।
पूरा समारोह अपनी बहन की रक्षा के लिए भाई के कर्तव्य को दर्शाता है, साथ ही अपने भाई के लिए बहन का आशीर्वाद भी।
ऐसा मान्यता है कि पूर्व काल में इस दिन देवी यमुना ने यमराज को अपने घर पर भोजन कराया था। उस दिन से नार के जीवों को यातना से छुटकारा मिला और वे पाप मुक्त हो गये थे और सभी ने अपनी इच्छा के अनुसार सन्तोषपूर्वक नरक में रहे। उन सब ने मिलकर एक महान् उत्सव मनाया जो यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था। इसीलिए यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से विख्यात हुई।
जिस तिथि को यमुना ने यम को अपने घर भोजन कराया था, उस तिथि के दिन जो मनुष्य अपनी बहन के हाथ का उत्तम भोजन करता है उसे उत्तम भोजन समेत धन की प्राप्ति भी होती रहती है।
यह अनुष्ठान भाई के मंगल और लंबी आयु की कामना के लिए किया जाता है, जो परंपरागत रूप से भाई दूज के पर्व पर होता है।
वेदी/चौकी: एक ऊँची चौकी (उच्चासन/पीढ़ी/मोढ़ा) को स्थापित किया जाता है।
शंक्वाकार आकृतियाँ: चौकी पर चावल के घोल (पिठार) से पाँच शंक्वाकार (कोण जैसे) आकृतियाँ बनाई जाती हैं।
सिंदूर लेपन: प्रत्येक आकृति के बीच में सिंदूर लगाया जाता है।
सामग्री: सामने एक कलश में स्वच्छ जल, सिंदूर, 6 कुम्हड़े के फूल (उपलब्ध न होने पर गेंदा का फूल), 6 पान के पत्ते, 6 सुपारी, बड़ी इलायची, छोटी इलायची, हर्रे (हरीतकी), और जायफल जैसी सामग्री रखी जाती है।
स्वागत और आसन: बहन सबसे पहले भाई के पैर धोकर उन्हें शुद्ध करती है और फिर उन्हें उस तैयार की गई चौकी (उच्चासन) पर बैठाती है।
अंजलि-बंधन और लेपन: बहन स्वयं अंजलि (दोनों हाथ जोड़कर) बनाती है और उसी अवस्था में भाई के दोनों हाथों पर चावल का घोल (पिठार) और सिंदूर लगाती है। इसके बाद, उनके हाथों पर शहद (मधु), गाय का घी और चंदन का लेप लगाया जाता है।
संकल्प और कामना: बहन भाई की अंजलि में पान का पत्ता, सुपारी, कुम्हड़े का फूल, जायफल आदि रखती है और यह पवित्र संकल्प बोलती है:
‘यमुना ने निमंत्रण दिया यम को, मैं निमंत्रण दे रही हूं अपने भाई को। जितनी बड़ी यमुना जी की धारा, उतनी बड़ी मेरे भाई की आयु हो।’
जल अर्पण: यह कहते हुए, बहन भाई की अंजलि में जल डाल देती है। इस क्रिया को तीन बार दोहराया जाता है।
समापन और तिलक: तीनों बार जल अर्पण के बाद, भाई के हाथ-पैर जल से धोकर साफ कपड़े से पोंछे जाते हैं। बहन श्रद्धापूर्वक भाई के मस्तक पर टीका लगाती है।
भोजन/प्रसाद: टीका के बाद भाई को भुना हुआ मखाना खिलाया जाता है।
उपहार और भोजन: भाई अपनी सामर्थ्य के अनुसार बहन को उपहार देता है। अंत में, दोनों मिलकर उत्तम पदार्थों का भोजन करते हैं।
छाया भगवान सूर्यदेव की पत्नी हैं जिनकी दो संतान हुई यमराज तथा यमुना. यमुना अपने भाई यमराज से बहुत स्नेह करती थी. वह उनसे सदा यह निवेदन करती थी वे उनके घर आकर भोजन करें. लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। अधिक पढ़ें...